Book Title: Vyakhyapragnapti Sutra Part 04
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: 

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Page 203
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyarmandie जाब विहरंति एएसिणं जीवाणं अलसियत्तं साह, एए णं जीवा अलसा समाणा नो बहूणं जहा सुत्ता तहा अलसा व्याख्या भाणियब्बा, जहा जागरा तहा दक्खा भाणियव्वा जाव संजोएत्तारो भवंति, एएणं जीवा दक्खा समाणा बहुर्हि १श्ववके प्रवति आयरियवेयावचेहिं जाव उवजझाय- थेर० तबस्सि: गिलाणवेया. सेहवे. कुलवेया. गणवेया० संघवेयाव. | उद्देवार // 1.38 // साहम्मियवेयावच्चेहिं अत्ताणं संजोएत्तारो भवंति, एएसिणं जीवाणं दक्वत्तं साहू, से तेण?णं तं चेव जाव साहू / / 18 // 10 // सोइंदियवसद्दे णं भंते ! जीवे किं बंधह, एवं जहा कोहवस तहेब जाव अणुपरियह एवं चक्खिदियवसद्देवि, एवं जाव फासिदियवसद्दे जाव अणुपरियगृहातए णं सा जयंती समणोवासिया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं एयमढे सोचा निसम्म हहतुहा सेसं जहा देवाणंदाए तहेव पवाया जाव सब्वदुबप्पहीणा / सेवं भंते!. ४२त्ति // (सूत्र 443) / / 12-2 // [प्र०] हे भगवन् ! दक्षपणु-उद्यमीपणु सारं के आलसुपणु सारं १[उ.] हे जयंती ! केटलाक जीवोनुं दक्षपणु सारं अने केटलाक जीवोनुं आलसुपणु सारं. [प्र.] हे भगवन् ! ए प्रमाणे शा हेतुथी कहो छो-इत्यादि तेज प्रमाणे कडेवु . [उ.] हे जयंती! जे आजीबो अधार्मिक (अधर्मानुसारी) यावद् विहरे छे, ए जीवोन आळसुपणु सारुके. ए जीवो जो आळसु होय तो घणा जीवोना दुःख माटे धता नथी-इत्यादि बधु 'सतेला'नी पेठे कहेवु, तथा 'जागेला'नी पेठे दक्ष-उद्यमी जाणवा, यावत्-[ धार्मिक प्रवृत्तिओ साथे] जोडनारा थाय से, बळी ए जीवो दश्व होय तो आचार्य, उपाध्याय, स्थविर, तपस्वी, ग्लान, शैक्ष (नव दीक्षित) कुल, | गण, संघ, अने साधर्मिकना घणा वैधावच-सेवा-साये आत्माने जोडनारा थाय थे. तेथीए जीवोर्नु दक्षपणु सार्क के. माटे हे जयंती! ASHRA For Private and Personal Use Only

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