Book Title: Vyakhyapragnapti Sutra Part 04
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: 

View full book text
Previous | Next

Page 177
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir व्याख्याप्रति // 1.1 // ISRO CA |वयासी-जन्नं अजो। इसिभद्दपुत्ते समणोवासए तुझं एवं आइक्खह जाव परूवेइ-देवलोगेसु णं अजो। देवाणं जहनेणं दस वाससहस्साई लिई पन्नत्ता तेण परं समयाहिया जाब तेण परं वोच्छिन्ना देवा य देवलोगा य, सच्चे गं १९शतके एसमहे।तए णं ते समणोवासगासमणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं एयमढे सोचा निसम्म समणं भगवं महा- उदेश:१९ वीरं चंदन्ति नमंसन्ति 2 जेणेव इसिभद्दपुत्ते समणोवासए तेणेव उवागच्छन्ति र इसिभद्दपुत्तं समणोवासगं वंदंति X // 1.12 // | नमसंति 2 एयमट्ठ संमं विणएणं भुजोर खाति / तए णं समणावामया पसिणाई पुच्छंति पु०२ अट्ठाई परियादे यति अ०२ समणं भगवं महावीरं वदति नमसंति वं०२ जामेव दिसंपाउन्भूया तामेव दिसंपडिगया (सूत्रं 434) / ते काले-ते समये श्रमण भगवंत महावीर यावत् समवसर्या, यावत् परिषद तेमनी उपासना करे छे. त्यार बाद ते श्रमणोपासको [ श्री महावीरस्वामी आध्यानी ] आ वात सांभळी, हर्षित अने संतुष्ट थया-इत्यादि तुंगिक उद्देशकनी पेठे जाणवू, यावत् | तेओ पर्युपासना करे के. त्यार पछी श्रमण भगवंत महावीरे ते श्रमणोपासकोने तथा अत्यन्त मोटी ते पर्षदने धर्मकथा कही. यावत् तेओ आज्ञाना आराधक थया. त्यार पछी ते श्रमणोपासको श्रमण भगवंत महावीर पासेवी धर्मने सांभळी, अत्रधारी, हर्षित अने IP | संतुष्ट थया, अने प्रयलथी उभा थइ श्रमण भगवंत महावीरने बांदी अने नमीने आ प्रमाणे कगुं-'हे भगवन् ! ए प्रमाणे खरेखर | ऋषिभद्रपुत्र श्रमणोपासक अमने ए प्रमाणे कई वे, यावत् प्ररूपे छे के, हे आर्य ! देवलोकमां देवोनी जघन्य स्थिति दश हजार वर्षनी कही छे, अने ते पछी समयाधिक यावद् उत्कृष्टस्थिति [ तेत्रीश सागरोपमनी कही छे ], अने पछी देवो अने देवलोक ब्यु. च्छिन्न थाय छे, तो हे नगवन् ! ते ए प्रमाणे केवीरीते होय? [उ०] 'हे आर्यो' ! एम कही श्रमण भगवंत महावीरेते श्रमणोपासकोने से For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238