Book Title: Vyakhyapragnapti Sutra Part 04
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: 

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Page 201
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallassagarsun Gyanmandie व्याख्याप्राप्ति // 10 // 6 // १शतके उशार 1031 Santoshi धम्मजागरियाण अप्पाणं जागरइसारो भवति, एएसि णं जीवाणं जागरियत्तं साहू, से तेणद्वेण जयंती ! एवं वुचह अस्धेगव्याणं जीवाणं सुत्तत्तं साहू अल्धेगइयाणं जीवाणं जागस्यित्तं साहू // [प्र.] हे भगवन् ! सुतेलापणु सारं के जागरितत्त्व-जागेलापणु सारूं ? [उ०] हे जयंती केटलाक जीवोनुं सूनेलापणु सारूं, अने केटलाक जीवोर्नु जागेलापणु सारं. [प्र०] हे भवगन् ! शा हेतुथी तमे एम कहो छो के 'केटलाक जीवोर्नु खतेलापणु सारूं| अने केटलाक जीवोनुं जागेलापणु साम! [उ.] हे जयंती ! जे आ जीवो अधार्मिक, अधर्मने अनुसरनारा जेने अधर्म प्रिय के एवा, अधर्म कहेनारा, अधर्मने ज जोनारा, अधर्ममा आसक्त, अधर्माचरण करनारा अने अधर्मथीज आजीविकाने करता विहरे छे, ए| जीवोन सतेलापणु सारुं छे. जो ए जीवो सूतेला होय तो बहु प्राणोना, भूतोना, जीवोना तथा सचोना दुःख माटे, शोक माटे, यावत्-परिताप माटे थता नथी, वळी जो ए जीवो सूतेला होय तो पोताने, बीजाने के चनेने यणी अधार्मिक संयोजना बडे जोडनारा होता नथी, माटे ए जीवोन सूतेलापणु सारुं छे. तथा हे जयंती !जे आ जीवो धार्मिक अने धर्मानुसारी के, यावत्-धर्मवडे आजी विका करता विहरे छे, ए जीवोनुं जागेलापणु सारं छे जो ए जीवो जागता होय तो ते घणा प्राणीओना यावत्-सत्चोना अदुःख (सुख ) माटे यावत्-अपरिताप (शान्ति ) माटे बर्ते छे, वळी ते जीवो जागता होय तो पोताने, परने अने बनेने घणी धार्मिक | संयोजना (क्रिया ) साथे जोडनारा थाय थे, तथा ए जीवो जागता होय तो धर्मजागरिकाबढे पोताने जागृत राखे हे, माटे ए जीवोनुं जागेलापणु सारुं छे, ते हेतुथी हे जयंती! एम कईबाय ले के, केटलाक जीवोनु तेलापणु सारं अने केटलाक जीवाचें | जागेलापणु सारुं छे. For Private and Personal Use Only

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