Book Title: Vyakhyapragnapti Sutra Part 04
Author(s): Sudharmaswami,
Publisher:
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallassagarsun Gyarmandir व्याख्या १शतके उशार 1.25 // // 1025 // तएणं से पोक्खली समणोवासगे संखस्स समणोवासगस्स अंतियाओ पोसहसालाओ पडिनिक्खमइ रत्ता सावस्थि नगरिं मझमज्झेणं जेणेव ते समणोवासगा तेणेव उवागच्छद 2 ते समणोवामए एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया! संखे समणोवासए पोसहसालाए पोसहिए जाब विहरइ, त छदेण देवाणुप्पिया तुझे बिउले असणपाणखाइमसाइमे जाब विहरह, संखे णं समणोवासए नो हव्वमागच्छद / तए ण ते ममणोवासगा ते विउले असणपाणम्वाइममाइमे आसाएमाणा जाब विहरंति / तए णं तस्स संखस्स समणोचासगस्म पुब्वरत्तावरत्तकालसमयसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स अयमेयारूवे जाव समुप्पजिस्था-सेयं खलु मे कल्लं जाव जलंते समण भगवं महावीरं वंदित्ता नमसित्ता जाव पज्जुवासित्ता तओ पडिनियत्तस्स पक्खियं पोसहं पारित्तएत्तिकहु एवं संपेहेति एवं 2 कल्लं जाव जलते पोसहसालाओ पडिनिक्वमति प० 2 सुद्धप्पबेसाई मंगल्लाई वस्थाई पवर परिहिए सयाओ गिहाओ पडिनिक्खमति सयाओ गिहाओ पडिनिक्खमित्ता पादविहारचारेणं सावत्थि नगरि मज्झमजमेण जाब पज्जुवासति, अभिगमो नस्थि। त्यारवाद ते पुष्कलि श्रमणोपासक शंख श्रमणोपासकनी पासेयी पोषधशालामांथी बहार नीकळी श्रावस्ती नगरीना मध्यभागमा ज्या ते श्रमणोपासको के त्या आव्यो, अने त्या आवी ते श्रमणोपासकोने आ प्रमाणे कधु-'हे देवानुप्रियो ! ए प्रमाणे खरेखर शंख श्रमणोपासक पोषधशालामा पोषध ग्रहण करीने यावद् विहरे छे. [ तेणे कयु के-] 'हे देवानुप्रियो ! तमे इच्छा मुजब घणा अशन, पान, खादिम अने खादिम आहारनो आस्वाद लेता यावत् विहरो, शंख श्रमणोपासक तो शीघ्र नहि आवे.' त्यारवाद ते For Private and Personal Use Only

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