Book Title: Vyakhyapragnapti Sutra Part 04
Author(s): Sudharmaswami,
Publisher:
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________________ Shri Mahawan Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsun Gyarmandir बलियत्तं भंते! साहू दुबलियत्तं साह ?, जयंती! अत्यगइयाणं जीवाणं यलियस साहू अत्यंगइयाणं जीवाणं दुबलियत्तं साहू, से केणटेणं भंते ! एवं बुचह जाच माहू!, जयंती!जे इमे जीवा अहम्मिया जाब विहरंति एएसि १२श्तके प्रतिः जाणंजीवाणं दुबलि यत्तं साहू, एए णं जीवा एवं जहा सुत्तस्स तहा दुबलियस्स बत्तब्वया भाणियब्बा, बलियस्स हा उद्देशार 37 // जहा जागरस्स तहा भाणियब्वं जाव संजोएत्तारो भवंति, एएसिणं जीवाणं घलियत्त साहु, से तेणटेणं जयंती! 1037 // एवं बुच्चहतं चेव जाब साहू। [प्र०] हे भगवन् ! सबलपणु सारं के दुर्बलपणु सारं ? [उ०] हे जयंती ! केटलाक जीवोनुं सबलपणु सारुं अने केटलाक | जीवोनु दुर्बलपणु सालं. [प्र.] हे भगवन् ! तमे ए प्रमाणे शा हेतुथी कहो छो के, 'केटलाक जीवोनुं सबलपणु सारुं अने केटलाक | जीवोर्नु दुर्बलपशु सारं' ! [उ०) हे जयंती ! जे आ जीवो अधार्मिक छे, अने यावत् अधर्मवडे आजीविका करता विहरे के, ए | जीवोन दुर्बल पणु सारूं, जो ए जीवो दुबला होय तो कोइ जीवना दुःख माटे थता नथी-इत्यादि 'सतेला'नी पेटे दुर्बलपणानी वक्तव्यता कहेवी, अने 'जागता'नी पेठे सवलपणानी वक्तव्यता कडेवी; यावत्-धार्मिक क्रिया-संयोजनावडे जोडनारा थाय छे, माटे ए जीवोनू बलवानपणु सारं छे, ते हेतुथी हे जयंती ! एम कहेवाय छ के-इत्यादि केटलाक जीवोनुं बलवानपणु अने केटलाक जीवोनुं दुलपणु सारु छे. दक्खत्तं भंते ! साहू आलसियत्तं साह , जयंती ! अत्यंगतियाण जीवाणं वक्वत्तं साह अत्यंगतियाणं|| जीवाणं आलसियतं साह, से केणद्वेणं भंते / एवं बुच्चइ तं चेव जाप साहू, जयंती! जे हमे जीवा महम्मिया CAN-SCRECR-54-5555 For Private and Personal Use Only

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