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अर्थ :- इसमे से कीर्तिविजयजी वाचक के शिष्य उपाध्याय विनयविजयजी के " शांत सुधारस" नामके भावना प्रबोध ग्रंथ की रचना की है ॥४॥
(गीति छन्दः) शिखिनयनसिन्धुशशिमितवर्षे हर्षेण गन्धपुरनगरे । श्रीविजयप्रभसूरिप्रसादतो यत्न एष सफलोऽभूत् ॥५॥
अर्थ :- विक्रम संवत १७२३ में गंधपुर (गंधार) नगर में हर्ष और उल्लासित हृदय से कीया प्रयत्न जैनाचार्य श्री विजयप्रभसूरीश्वर के आशीर्वाद से सफल हुआ ॥५॥
(उपजाति छन्दः) यथा विधु षोऽशभिः कलाभिः सम्पूर्णतामेत्य जगत्पुनीते । ग्रन्थस्तथा षोऽशभिः प्रकाशैरयं समग्रैः शिवमातनोतु ॥६॥
अर्थ :- जिस तरह चन्द्र अपनी सोलह कला से बीखरकर सृष्टि को आनंदित करता है, उसी तरह सोलह भावनाओ मे बटा हुआ यह ग्रंथ सबका कल्याण करनारा बने ॥६॥
(इन्द्रवज्रा छन्दः) यावज्जगत्येष सहस्त्रभानुः पीयूषभानुश्च सदोदयेते । तावत्सतामेतदपि प्रमोदम्, ज्योतिः स्फुरद्वड्मयमातनोतु ।७। __ अर्थ :- जब तक सूर्य और चन्द्र उदय होते है, तब तक सज्जनो को यह "शांत सुधारस" ग्रंथ मन को प्रसन्न करता रहेगा, अवम चित्त को शांत करने का मार्ग दिखाता रहेंगा ॥७॥
शांत-सुधारस
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