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"प्राग्वान-हीतहास:
कम करने पर, उत्पन्न हुये पारस्परिक झगड़ों पर तथा ऐसे अन्य ज्ञाति की उन्नति में बाधक कारणों पर विचार होते हैं तथा निर्णय निकाले जाते हैं । आप को सर्व प्रकार से योग्य समझकर और आप में समाज, ज्ञाति, धर्म के प्रति श्रद्धा एवं सद्भावना देखकर उक्त सभा ने आपको वि० सं० १९६६ में हुये अधिवेशन में सभा के स्थायी मंत्री नियुक्त किये और तब से आप उक्त सभा के स्थायी मंत्री का कार्य करते आ रहे हैं।
___ वि० सं० १९६६ मार्गशीर्ष शुक्ला 8 नवमी को भृतिनिवासी शाह देवीचन्द्र रामाजी ने श्रीमद् आचार्य विजययतीन्द्रसूरिजी महाराज साहब की अधिनायकता में श्री गोडवाड़ की पंचतीर्थ की यात्रार्थ चतुर्विध संघ भनिनकी श्रीगोवाट निकाला था। संघ के प्रस्थान के शुभ मुहूर्त पर संघ में लगभग १५० श्रावक-श्राविका पंचतीथीं की संघयात्रा और और २२ साधु-साध्वी सम्मिलित हुये थे। श्री त्रैलोक्यदीपक-धरणविहार नामक उसमें श्रापको प्राणप्रथा- राणकपुरतीथे पर जब यह संघ पहुँचा, उस समय श्रावक संख्या में बढ़ते बढ़ते सहयोग
लगभग २५० हो गये थे। यह संघ पन्द्रह दिवस में वापिस अपने स्थान पर लोट कर आम था। आप भी इस संघ में सम्मिलित हुये थे। आपश्री सरिजी महाराज के अनन्य भक्त एवं श्रावक भी हैं। अतः संघ एवं गुरुभक्ति का लाभ लेने में आपने कोई कमी नहीं रक्खी। संघ की समस्त व्यवस्था भोजन, विहार, पूजन, दर्शन, पड़ाव आदि सर्वसम्बन्धी आप पर निर्भर थी। आपने इतनी स्तुत्य सेवा बजाई की संघपति ने आपकी सेवाओं के सन्मान में अभिनन्दन-पत्र अर्पित किया, जो श्रीमद् आचार्यश्री की 'मेरी गोडवाड़यात्रा' नामक पुस्तक के आन्तरपृष्ठ के ऊपर ही प्रकाशित हुआ है ।
FelhIRLIRMAN
हार्दिक धन्यवाद शाह ताराचन्द्रजी मेघराजजी साहब,
मु० पावा (मारवाड़) निवासी। भूति से सेठ देवीचन्द्रजी रामाजी के द्वारा निकाला गया गोड़वाड़ जैनपंचतीर्थी का संघ जहाँ २ जाता रहा, संघ के पहुंचने से पहले ही आप वहाँ के स्थानीय संघ के द्वारा पूर्ण प्रबन्ध कराते रहे—जिससे संघ को हर तरह की सुविधा रही । आदि से अन्त तक आप संघ-सेवा का लाभ लेते रहे
और संघपति को समय समय पर योग्य सहयोग देते रहे हैं । आप एक उत्साही, समयज्ञ और सेवाभावी परम श्रद्धालु सज्जन हैं । 'श्री वर्धमान जैन बोर्डिमहाउस', सुमेरपुर की समुन्नति का विशेष श्रेय भी आपको ही है । इस निस्वार्थ सेवा के लिये हम भी आपको बार-बार धन्यवाद देते हैं । शमिति ।
संघवी-पुखराज देवीचन्द्रजी जैन. .
भूतिनिवासी