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:: प्रस्तावना :
यह पुस्तक उनमें मेल चाहती है । अतः पढ़ी जायगी तो उन्हें सजीव समाज के रूप में मरने से बचने में मदद: देगी ।' श्री श्रीनाथ मोदी 'हिन्दी-प्रचारक', जोधपुर ने लिखा 'जैन-जमती' जागृति करने के लिये संजीवनी बटी है । फैले हुये श्राडम्बर एवं पाखण्ड को नेश्तनाबूद करने के लिये बम्ब का गोला है' इसी प्रकार श्री भंवरलाल सिंघवी,: कलकत्ता ने भी अपना 'जैन- जगती' पर आकर्षक ढ़ंग से 'जैन-जगती और लेखक' शीर्षक से अभिमत भेजा । स्वर्गीय राष्ट्रपिता बापू ने भी इस पर अपने गुप्तमंत्री द्वारा दो पंक्ति में उत्साहवर्धक शुभाशीर्वाद प्रदान किया । पुस्तक को हिन्दू और जैन दोनों पक्षों ने अपनाया । गुरुदेव की कृपा 'जैन-जगती' के प्रकाशन से कई गुणी बढ़ गई, जो बढ़ कर आज मुझको प्राग्वाट - इतिहास-लेखक का यशस्वी पद प्रदान कर रही है। ऐसे कृपालु गुरुदेव के द्वारा मुझमें और श्री ताराचन्दजी में सर्वप्रथम परिचय वि० सं० २००० में बागराग्राम में हुआ ।
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मध्याह्न में आचार्य श्री विराज रहे थे । पास में कुछ श्रावकगण भी बैठे थे । उनमें श्री ताराचन्द्रजी भी थे ।. आचार्य श्री ने बैठे हुए श्रावकों को प्रसंगवश प्राग्वाटज्ञाति का इतिहास लिखवाने की ओर प्रेरित किया । श्री आचार्य श्री का प्राग्वाटज्ञाति ताराचन्द्रजी परमोत्साही, कर्मठ कार्यकर्त्ता हैं । आचार्य श्री ने इनकी ओर अभिदृष्टि का इतिहास लिखाने के लिए करके कहा कि यह कार्य तुमको उठाना चाहिए। ज्ञाति का इतिहास लिखवाना भी उपदेश और श्री ताराचन्दजी का उसको शिरोधार्य करना एक महान् सेवा है । इस उपदेश से ताराचन्द्रजी प्रोत्साहित हुये ही, फिर वे आचार्य और पौरवाड़ संघ-सभा द्वारा श्री के परमभक्त जो ठहरे, तुरन्त गुरु की आज्ञा को शिरोधार्य करके प्राग्वाटज्ञाति का उसको कार्यान्वित करवाना. इतिहास लिखवाने की प्रेरणा उन्होंने स्वीकृत करली । गुरुदेव ने भी आपको शुभाशीर्वाद दिया । उसी दिन से प्राग्वाटज्ञाति का इतिहास लिखवाना आचार्यश्री और श्री ताराचन्द्रजी का परमोद्देश्य बन गया। दोनों में इस सम्बन्ध पर समय २ पर पत्र-व्यवहार होता रहा । वि० सं० २००१ माघ कृष्णा ४ को सुमेरपुर में 'श्री वर्द्धमान जैन बोर्डिंग हाउस' के विशाल भवन में श्री ' प्राग्वाट संघ सभा' का द्वितीय अधिवेशन हुआ । श्री ताराचन्द्रजी ने ज्ञाति का इतिहास लिखवाने का प्रस्ताव श्रीसभा के समक्ष रक्खा । सभा ने सहर्ष उक्त प्रस्ताव को स्वीकृत करके श्री ' प्राग्वाट - इतिहास - प्रकाशक-समिति' नाम की एक समिति सर्वसम्मति से निम्न सम्य १ - सर्व श्री ताराचन्द्रजी पावावासी (प्रधान), २ – सागरमलजी नवलाजी नाडलाईवासी, ३ - कुन्दनमलजी ताराचन्द्रजी बालीवासी, ४ - मुल्तानमलजी सन्तोषचन्द्रजीं बालीवासी, ५ - हिम्मतमलजी हुक्माजी बालीवासी को चुनकर बना दी और उसको इतिहास का लेखन करवाने सम्बन्धी सर्वाधिकार प्रदान कर दिये । अर्थसम्बन्धी भार सभा ने स्वयं अपने ऊपर रक्खा |
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ताराचन्द्रजी ने उक्त समाचारों से आचार्य श्री को भी पत्र द्वारा सूचित किया । जब से प्राग्वाट इतिहास की चर्चा चली, तब से ही गुरुदेव और मेरे बीच भी इस विषय पर समय २ पर चर्चा होती रही । इतिहास क आचार्यश्री द्वारा मेरी लेखक लिखवाया जाय- इस प्रश्न ने पूरा एक वर्ष ले लिया । वि० सं० २००२ में आचार्य : के रूप में पसन्दगी और श्री का चातुर्मास बागरा में ही था । श्राचार्यश्री की बागरा स्थिरता देखकर श्री इतिहासकार्य का प्रारम्भ. ताराचन्द्रजी आचार्यश्री के दर्शनार्थ एवं इतिहास लिखवाने के प्रश्न पर आचार्यश्री से परामर्श करने के लिए आश्विन शु० १० को बागरा आये। आचार्यश्री, ताराचन्द्रजी और मेरे बीच इतिहास लिखवाने के प्रश्न पर दो तीन बार घन्टों तक चर्चा हुई । निदान गुरुदेव ने इतिहास-लेखन का भार मेरी निवल