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: प्राग्वाद-इतिहास::
विषय
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पृष्ठांक विमलवसति और लूणवसति
१८७ परिकोष्ट और सिंहद्वार दक्षिणद्वार और कीर्तिस्तम्भ मूलगम्भारा और गूढमण्डप नवचौकिया नवचौकिया में कलादृश्य रङ्गमण्डप भ्रमती और उसके दृश्य
१६० सिंहद्वार के भीतर तृतीय मण्डप का दृश्य १६१ देवकुलिकायें और उनके मण्डपों में, द्वारचतुष्कों में, स्तंभों में खुदे हुये कलात्मक चित्रों का परिचय उज्जयन्तगिरितीर्थस्थ श्री वस्तुपाल-तेजपालकी ढूंक १६४ महं० जिसधर द्वारा ३०० द्रामों का दान १६७ श्री अर्बुदगिरितीर्थस्थ विमलवसतिकाख्य चैत्यालय तथा हस्तिशाला में अन्य प्राग्वाटबन्धुओं के पुण्यकार्यसाहिल संतानीय परिवार और पल्लीवास्तव्य श्रे. अम्बदेव
१६८ पत्तननिवासी श्रे० आशुक महं० वालण और धवल श्रे. यशोधन श्री अर्बुदगिरितीर्थस्थ श्री विमलवसति की संघयात्रा और कुछ प्राग्वाटज्ञातीय बन्धुओं के पुण्यकार्य
श्रे० आम्रदेव श्रे. जसधवल और उसका पुत्र शालिग ,,
श्रे० देसल और लाखण महा० वस्तुपाल द्वारा श्री मल्लिनाथ-खत्तक का बनवाना
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विषय
पृष्ठीक श्री जैनश्रमणसंघ में हुये महाप्रभावक आचार्य और साधुश्री सांडेरकगच्छीय श्रीमद् यशोभद्रमरि वंशपरिचय और आपका बचपन २०२ ईश्वरसूरि का मुंडाराग्राम से पलासी आना
और सौधर्म की मांगणी और उसकी दीक्षा २०३ सूरिपद और गच्छ का भार वहन करना " अजैनों को जैनी बनाना
२०४ स्वर्गवास अंचलगच्छसंस्थापक श्रीमद् आर्यरक्षितसूरि वंशपरिचय
२०६ जयसिंहरि का पदार्पण और द्रोण का भाग्योदय । गोदुह का जन्म और वि० सं० ११४६ में उसकी दीक्षा शास्त्राभ्यास और आचार्यपदवी
२०७ आचार्यपद का त्याग और क्रियोद्धार , भणशाली गोत्र की स्थापना २०८ आर्यरक्षितसूरि के उपदेश से यशोधन का भालेज में जिनमन्दिर बनवाना और शत्रुजयतीर्थ को संघ निकालना तथा विधिगच्छ की स्थापना समयश्री की दीक्षा पचन में प्राचार्यजी
२०६ स्वर्गारोहण बृहत्तपगच्छीय सौवीरपायी श्रीमद् वादीदेवसरि वंश-परिचय पूर्णचन्द्र को दीक्षा, उनका विद्याध्ययन और सूरिपद
२१० गच्छनायकपन की प्राप्ति
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