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:: प्राग्वाट इतिहास ::
[ द्वित्तीय
महामात्य पृथ्वीपाल की स्त्री का नाम नामलदेवी था। उसकी कुची से दो प्रसिद्ध पुत्रों का जन्म हुआ । ज्येष्ठ पुत्र जगदेव या जगपाल था और कनिष्ठ पुत्र धनपाल था । धनपाल अपने पिता के समान प्रख्याव महामात्य धनपाल और हुआ । धनपाल ने अर्बुदाचलतीर्थस्थ विमलवसतिका में समय २ पर अनेक जीर्णोद्धार और नवीन विवप्रतिष्ठादि के धर्मकार्य करवाये । महामात्य पृथ्वीपाल द्वारा विनिर्मित हस्तिशाला में विनिर्मित दश हस्तियों में से सात स्वयं महामात्य पृथ्वीपाल द्वारा विनिर्मित हैं और दो हस्ति महामात्य धनपाल ने एक अपने ज्येष्ठ भ्राता जगदेव के नाम पर और दूसरा अपने नाम पर बनवाकर वि० सं० १२३७ अषाढ़ शु० अष्टमी बुधवार को प्रतिष्ठित करवाये ।
उसका ज्येष्ठ भ्राता जगदेव तथा धनपाल द्वारा हस्तिशाला में तीन हाथियों की संस्थापना
महा • धनपाल ने कासहृदगच्छीय श्री उद्योतनाचार्थीय श्रीमसिंहसूरि की तत्त्वावधानता में श्री अर्बुदाचलतीर्थस्थ श्री विमलवसतिकाव्यतीर्थ की अपने समस्त परिवार तथा अन्य प्रतिष्ठित नगरों के अनेक प्रसिद्ध कुलों और व्यक्तियों के सहित यात्रा की। जाबालीपुरनरेश का प्रसिद्ध मंत्री यशोत्रीर भी धनपाल द्वारा श्री विमलवसतिकातीर्थ में सपरिवार अपने कुटुम्ब सहित इस अवसर पर अर्बुदतीर्थ के दर्शन करने आया था । श्रे० जसहड़ प्रतिष्ठादि धर्मकृत्यों का करवाना का पुत्र पार्श्वचन्द्र भी अपने विशाल परिवार सहित इस यात्रा में सम्मिलित हुआ था । 'अन्य कुल भी आये थे । प्रसिद्ध २ व्यक्तियों का यथासंभव वर्णन दिया जायगा । महा० धनपाल ने विमलवसतिका की वीवों, चौवीसवीं, पच्चीसवीं और छब्बीसवीं देवकुलिकाओं का जीर्णोद्धार करवाया और उनमें वि० सं० १२४५ वैशाख कृ० ५ पंचमी गुरुवार को श्रीमद् सिंहसूरि के करकमलों से क्रमशः अपने ज्येष्ठ भ्राता ठ० जगदेव के श्रेयार्थ श्री ऋषभनाथप्रतिमा और श्री शांतिनाथप्रतिमा, अपने कल्याणार्थ श्री संभवनाथप्रतिमा, अपनी मातामही पद्मावती के श्रेयार्थ श्री अभिनन्दनदेवप्रतिमा प्रतिष्ठित करवाकर स्थापित करवाई ।
महामात्य धनपाल की स्त्री रूपिणी ( अपर नाम पिसाई) ने अपने कल्याणार्थ तीसवीं देवकुलिका का जीर्णोद्धार करवाकर उसमें उपरोक्त शुभावसर पर श्रीसिंहसूरि के कर-कमलों से ही श्रीचन्द्रप्रभबिंब की प्रतिष्ठा करवाई । जगपाल धनपाल की स्त्री रूपिणी ने भी वसवीं देवकुलिका और उसकी स्त्री मालदेवी ने उनतीसवीं देवकुलिका का तथा जगदेव और उसकी जीर्णोद्धार करवाया और दोनों ने क्रमशः अपने २ श्रेयार्थ उनमें श्री पद्मप्रभविंग और स्त्री द्वारा जीर्णोद्धार कार्य श्री सुपार्श्वबिंबों की स्थापना उक्त आचार्य के द्वारा उपरोक्त शुभावसर पर ही करवाई । महामात्य पृथ्वीपाल की पत्नी श्रीनामलदेवी ने भी इसी शुभावसर पर अपने श्रेयार्थ सत्तावीसवीं देवकुलिका का जीर्णोद्धार करवाया और उसमें श्रीसुमतिनाथ प्रतिमा को श्रीसिंहरि द्वारा प्रतिष्ठित करवाई ।
नाना आनन्द का छोटा पुत्र था । यह पृथ्वीपाल का लघुभ्राता था । जैसा ऊपर कहा जा चुका है कि नाना का विवाह त्रिभुवनदेवी के साथ हुआ था । त्रिभुवनदेवी की कुक्षी से दो पुत्र नागार्जुन और नागपाल नामक गाना और उसका परिवार उत्पन्न हुये । नागपाल का पुत्र आसवीर था । विमलवसति के जीर्णोद्धार कार्य में तथा उनके द्वारा प्रतिष्ठा, नाना ने भी यथाशक्ति भाग लिया । तरेपनवीं देवकुलिका में वि० सं० १२१२ मार्ग जीर्णोद्धार कार्य शुक्ला १० बुद्धवार को श्रीसम्भवनाथबिंब की प्रतिष्ठा श्रीमद् वैरस्वामिसूर के द्वारा
१ - 'मल्लिनाथ चरित्र की प्रशस्ति' गु० प्रा० मं० ० चरणलेख पृ० ११६१
२ - प्र० प्रा० जै० ले० सं० भा० २ ० २३३
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ले०६५, ६८, १००, १०३, १०६.