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:: प्रस्तावना ::
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'दिशा में आगे बढ़ने का साहस नहीं कर सका । मेरी धर्मपत्नी लाडकुमारी 'रस्सलता' ने मेरे साथ बीती बागरा में भी देखी थी और यहाँ भी । वह स्त्री होकर भी अधिक दृढ़ और संकल्पवती है। उसने मुझको उसी दिशा में आगे बढ़ने के लिए फिर सोचने ही नहीं दिया और मैं भी नहीं चाह रहा था। मेरी जन्म भूमि धामणियाग्राम, थाना काछोला, तहसील मांडलगढ़, प्रगणा
फिरता देखकर उस भीलवाड़ा में इतिहास - कार्य
तीस मील पूर्व में है और मोटर-सर्विस भीलवाड़ा स्वयं राजस्थान में व्यापार और टेलीफोन; कॉलेज, पुस्तकालय आदि के
भीलवाड़ा, विभाग उदयपुर ( मेदपाट ) में है। भीलवाड़ा से धामणिया चलती है । मेरे सम्बन्धी भी अधिकांशतः इस ही क्षेत्र में आ गये हैं। कला-कौशल की दृष्टि से समृद्ध एवं प्रसिद्ध नगर है । यहाँ रेल, तार, धुनिक साधन उपलब्ध हैं । इन सुविधाओं पर तथा मेरे ज्येष्ठ भ्राता पूज्य श्री देवीलालजी सा० लोढ़ा, सपरिवार कई वर्षों से उनकी मेवाड़ - टेक्स-टाईल-मील में नौकरी होने के कारण वहीं रहते हैं । इन आकर्षणों से मैंने भीलवाड़ा में ही रहना निश्चित किया और वहीं इतिहास कार्य करने लगा। श्री ताराचन्द्रजी सा० तथा पूज्य गुरुदेव को भी इसमें कोई आपत्ति नहीं हुई। यह मेरे में उनके अनुपम विश्वास होने की बात है और अतः मेरे लिए गौरव की बात है । भीलवाड़ा जब मैं आया, मेरे पास दो कार्य थे। एक श्रीमद् विजययतीन्द्रसूरीश्वरजी महाराज सा० का स्वयं का जीवन-चरित्र का लिखना, जिसको लिखने का मैं कभी से संकल्प कर चुका था और द्वितीय यह इतिहास - कार्य ही । फलतः मैंने यह ही उचित समझा कि 'गुरुग्रंथ' का कार्य यथासम्भव शीघ्र समाप्त कर लिया जाय और तत्पश्चात् सारा समय इतिहास - कार्य में लगाया जाय । नवम्बर १ (एक) सन् १९५० से ३ (तीन) जून सन् १६५९ तक लगभग ७ मास पर्यन्त मैं दोनों कार्यों को आधे दिन की सेवादृष्टि से साथ ही साथ करता रहा । ४ जून से इतिहास का कार्य पूरे दिन से किया जाने लगा। पूरे १ वर्ष ७ मास ६ दिवस इतिहास - कार्य चलकर इतिहास का यह प्रस्तुत प्रथम भाग आज सानन्द पूर्ण हो रहा है । इतिहास को अधिकतम सच्चा, सुन्दर और विशाल बनाने की दृष्टियों से सारे प्रयास भी इस ही समय में हो पाये हैं।
भीलवाड़ा में रहकर किये गये इतिहास-लेखन कार्य का संक्षिप्त सूचीगत परिचयः—
आमुख
१ - इतिहास के उपदेशक परमोपकारी श्रीमद् जैनाचार्य विजययतीन्द्रसूरिजी का साहित्य-सेवा की दृष्टि से "क्षिप्त जीवन-चरित्र.
२– इतिहास के भरकम भार को उठाने वाले एवं साहस, धैर्य, शांति से पूर्णतापर्यन्त पहुँचाने वाले श्री ताराचन्द्रजी मेघराजजी का परिचय.
३ - प्रस्तावना (प्रस्तुत )
प्रथम खण्ड (सम्पूर्ण)—
१- भ० महावीर के पूर्व और उनके समय में भारत | ३ - स्थायी श्रावक - समाज का निर्माण करने का प्रयास । ५- प्राग्वाट - प्रदेश | ६—–शत्रुंजयोद्धारक परमाईत श्रे० सं० जावड़शाह ।
२-म० महावीर के निर्वाण के पश्चात् । ४ - प्राग्वाट श्रावकवर्ग की उत्पत्ति ।
७- सिंहावलोकन |