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:: प्राग्वाट-इतिहास:
१४-क्या पुरवारजाति का कोई इतिहास प्राप्य है ? १५-पुरवारशाति संबंधी सामग्री किन २ साधनों से मिल सकती है ? १६-पुरवारज्ञाति के भारत भर में कुल घर और जनसंख्या कितनी होगी ?
भापका
जयकान्त पुरवार, मंत्री उक्त प्रश्नों का उत्तर एक तो स्वयं श्री जयकान्तजी ने दिया था। वे भावुक हैं और उत्तर भी उसी घरातल पर बना था। दूसरा पत्र श्री रामचरण मालवीय, आर्य-समाज-प्रचारक-मर्थना का था, जिसका सार इतिहास में लिखा गया है।
वैसे प्रसिद्ध पं० लालचन्द्र भगवानदास-बड़ौदा, अगरचन्द्रजी नाहटा-धीकानेर, पुरातत्त्ववेत्ता मुनि जिनविजयजी-चंदेरिया, श्रीमद् विजयेन्द्रसरिजी-अजमेर, पं० शिवनारायणजी 'यशलहा'-इन्दौर, श्री ताराचन्द्रजी डोसी-सिरोही, मुनिराज श्रीमद् ज्ञानसुन्दरजी-जोधपुर से मैं स्वयं जाकर मिला था और इतिहास-संबंधी बड़े २ प्रश्नों पर इनसे चर्चा की थी और इनके अनुभवों का लाभ उठाया था। ये सर्व सज्जन सहृदय, सहयोगभावना पाले, अनुभवशील व्यक्ति हैं। इन्होंने मेरा उत्साह बढ़ाया और पूरी सहानुभूति प्रदर्शित की। मैं इन सर्व विद्वान् सज्जनों की हृदय से सराहना करता हूं।
विज्ञप्ति और विज्ञापन विज्ञप्ति-मन्त्री श्री ताराचन्द्रजी ने निवेदन के साथ में एक छोटी-सी विज्ञप्ति १८४२२=१६ आकार की पाठ पृष्ठ की ५०० प्रतियां प्रकाशित की थीं और उसको बड़े २ विद्वानों, अनुभवशील व्यक्तियों, इतिहासप्रेमियों को तथा इतिहास की अग्रिम सदस्यता रु. १०१) देकर लेने वाले सज्जनों को अमल्य भेजी थी। निवेदन में समिति ने जो इतिहास-लेखन का भगीरथ कार्य उठाया था उसका परिचय था और प्राग्वाटज्ञाति के इतिहास का महत्त्व । इतिहासज्ञों, इतिहासप्रेमियों और ज्ञाति और समाज के हितचिन्तकों से तन, मन, धन, ज्ञान, अनुभव भादि प्रत्येक ऐसी दृष्टि से सहानुभूति और सहयोग की याचना की थी।
विज्ञप्ति में प्राग्वाट-इतिहास की रूपरेखा थी और उसमें इसके प्राचीन और वर्तमान दो भाग किये जाने का तथा प्रत्येक भाग का विषय-सम्बन्धी पूरा २ उल्लेख था। इतिहास के विषयों, रचनासम्बन्धी वस्तु पर आगे लिखा जायगा, अतः उस पर यहाँ कुछ लिखना उसके मूल्य को घटाना है । अन्तिम पृष्ठ पर लेखक ने भी जैनसमाज के ही नहीं, भारत के अन्य समाजों के सर्व इतिहासज्ञों से, पुरातत्त्ववेत्ताओं से स्था समाज के शुभचिन्तकों से, विद्वानों से हर प्रकार के प्रेमपूर्ण मार्ग-प्रदर्शन, रचना-सहयोग और शोध-सुविथा आदि के लिए प्रार्थना की थी और आशा की थी कि वे मेरे इस भगीरथ कार्य को सफल बनाने में सहायभूत होंगे।
विज्ञापन-१ साप्ताहिक 'जैन' (गुजराती)—मावनगर (काठियावाड़), ९ पाक्षिक श्वेताम्बर जैन (हिन्दी)आगरा और ३ मासिक राजेन्द्र (हिन्दी)—मन्दसोर (मालवा) में लगातार पूरे एक मासपर्यन्त विज्ञापन प्रकाशित