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:: प्राग्वाट - इतिहास ::
[ प्रथम
ने जावड़शाह को जैसी वीरोचित शिक्षा दिलवाई, उससे अधिक अपने धर्म की शिक्षा भी दिलवाई थी । जावड़शाह बहुत ही उदारहृदय, दयालु और न्यायप्रिय युवराज था । जावड़शाह को देख कर मधुमती की जनता अपने भाग्य पर फूली नहीं समाती थी ।
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are सर्व कलानिधान और अनेक विद्याओं में पारंगत हो चुका था । पिता के शासनकार्य में भाग लेने लग गया था । वृद्ध पिता, माता अब अपने घर के आंगन में पुत्रवधू को घूमती, फिरती देखने में अपने जावड़शाह का सुशीला सौभाग्य की चरमता देख रहे थे । परन्तु जावड़शाह के योग्य कोई कन्या नहीं दिखाई के साथ विवाह दे रही थी । अन्त में जावड़शाह की सहगति करने - सम्बन्धी भार भावड़शाह ने जावड़शाह के मामा श्रेष्ठ सोमचन्द्र के कन्धों पर डाला । मामा सोमचन्द्र अपने भाणेज के गुणों पर अधिक ही मुग्ध थे । वे उसको प्राणों से भी अधिक प्यार करते थे, तथा धर्म और समाज का उसके द्वारा उद्धार होना मानते थे । अच्छे मुहूर्त में वे मधुमती से भाणेज के योग्य कन्या की शोध में निकल पड़े। घेटी ग्राम में वे मोतीचन्द्र श्रेष्ठि के यहाँ ठहरे । घेटी ग्राम पहाड़ों के मध्य में बसा हुआ एक सुन्दर मध्यम श्रेणी का नगर था । वहाँ प्राग्वाट ज्ञातीय शूरचन्द्र श्रेष्ठि रहते थे । उनकी सुशीला नामक कन्या अत्यन्त ही गुणगर्भा और रूपवती थी । मोतीचन्द्र श्रेष्ठ द्वारा सुशीला की कीर्ति श्रवण करके सोमचन्द्र ने शूरचन्द्र श्रेष्ठ को बुलवा भेजा और उनके आने पर उन्होंने अपनी इच्छा प्रकट की । इस चर्चा में सुशीला की उपस्थिति भी आवश्यक समझी गई । अतः वे सर्व उठकर शूरचन्द्र श्रेष्ठि के घर पहुंचे और सुशीला से उसकी सहगति सम्बन्धी बात-चीत प्रारम्भ की। सुशीला ने स्पष्ट कहा कि वह उसी युवक के साथ में विवाह करेगी, जो उसके चार प्रश्नों का उत्तर देगा । शत्रुंजय महात्म्य - में लिखा है कि श्रे० सोमचन्द्र सुशीला को और उसके परिवार को साथ में लेकर मधुमती याये । सधर्मी बन्धुओं की एवं नगर के प्रतिष्ठित जनों की सभा बुलाई गई और उसमें सुशीला ने कुमार जावड़ से प्रश्न किया कि धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन पुरुषार्थों का क्या अर्थ होता है, समझाइये | कुमार जावड़ बड़ा योग्य, धर्मनीति का प्रतिभासम्पन्न युवक था । उसने उक्त पुरुषार्थों का ठीक २ वर्णन करके सुना दिया । सुशीला उत्तर सुनकर मुग्ध हो गई और उसने जावड़ के गले में जयमाला पहिरा दी ।
शुभ मुहूर्त में जावड़शाह और सुशीला का विवाह भी हो गया । अब भावड़शाह और भावला पूर्ण सुखी थे । उनकी कोई सांसारिक इच्छा शेष नहीं रह गई थी । केवल एक कामना थी और वह पौत्र का मुख जावड़शाह का विवाह और देखने की । कुछ वर्षों पश्चात् जावड़शाह के जाजनाग, जिसको जाजण भी कहा जाता माता-पिता का स्वर्गगमन है, पुत्र उत्पन्न हुआ । पौत्र की उत्पत्ति के पश्चात् भावड़शाह और सौभाग्यवती भावला त्यागमय जीवन व्यतीत करने लगे । सांसारिक और राजकीय कार्यों से मुंह मोड़ लिया और खूब दान देने लगे और तपस्यादि कठिन कर्मों को करने लगे । अन्त में दोनों अपना अन्तिम समय आया जानकर अनशन - व्रत ग्रहण करके स्वर्ग को सिधारे ।
माता-पिता के स्वर्गगमन के पश्चात् प्रगणा का पूरा २ भार जावड़शाह पर आ पड़ा । जावड़शाह योग्य और दयालु शासक था । वैसी ही योग्या और गुणगर्भा उसकी स्त्री सुशीला थी । दोनों तन, मन, धन से धर्म