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खरड ]
:: प्राग्वाट अथवा पौरवालज्ञाति और उसके भेद ::
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था । भिन्नमाल और प्राग्वाटदेश पर वि० सं० १९११ में यवनों का भयंकर आक्रमण हुआ था और उन्होंने भिन्नमाल और उसके श्वास-पास के प्रदेश को सर्वनष्ट कर डाला था, उस समय अनेक श्रावककुल अपने जन-धन का बचाव करने के हेतु मूलस्थानों का त्याग करके गुजरात, सौराष्ट्र और मालवा में जाकर बसे थे। जो प्राग्वाटज्ञातीय थे आज गूर्जर - पौरवाल, सौरठिया - मौस्वाल, मालवी - पौरवाल कहे जाते हैं। उनको वहाँ जाकर बसे हुये आज नौ सौ वर्षों के लगभग समय व्यतीत हो गया है । उनका अपने मूलस्थान में रहे हुये अपने सज्ञातीयकुलों से आवागमन के सुविधाजनक साधनों के अभाव में सम्बन्ध कभी का टूट चुका था और वे श्रम स्वतन्त्र शाखाओं के रूप में सौरठिया - पौरवाल, कपोला- पौरवाल, गूर्जर - पौरवाल और मालवी - पौरवाल कहे जाते हैं। इन शाखाओं में प्रथम दो शाखाओं के नाम तो चिरपरिचित और प्रसिद्ध हैं और शेष दो शाखाओं के नाम कम प्रसिद्ध हैं ।
गूर्जर-परवाल
गूर्जर- पौरवाल वे कहे जाते हैं, जो अहमदाबाद, पालनपुर, अणहिलपुर, धौलका आदि नगरों में इनके आस-पास के प्रदेश में बसे हुये हैं। ये कुल विक्रम की आठवीं शताब्दी से तेरहवीं शताब्दी के अन्तर में वहाँ जाकर बसते रहे हैं और इसका कारण एक मात्र यही है कि गुर्जर सम्राटों के अधिकतर महामात्यपदों पर और अन्य अति प्रतिष्ठित एवं उत्तरदायीपदों पर प्राग्वाटज्ञातीय पुरुष आरूढ़ होते रहे हैं। अकेले काश्यप गोत्रीय निन्नक के कुल की आठ पीढ़ियों ने वनराज चावड़ा से लगाकर कुमारपाल सम्राट् के राज्य- समय तक महामात्यपदों पर, दंडनायक जैसे अति सम्मानित पदों पर रहकर कार्य किया है । महामात्य निन्नक, दण्डनायक लहर, धर्मात्मा मन्त्रीवीर, गूर्जर - महाबलाधिकारी विमल, गूर्जर महामात्य - सरस्वतीकंठाभरण वस्तुपाल, उसका भ्राता महाबलाधिकारी दंडनायक तेजपाल जैसे प्राग्वाटवंशोत्पन्न अनेक महापुरुषों ने गूर्जर सम्राटों की और गूर्जर-भूमि की कठिन से कठिन और भयंकर परिस्थितियों में प्राणप्रण एवं महान् बुद्धिमत्ता, चतुरता, भक्ति एवं श्रद्धा से सेवायें की हैं । गूर्जर भूमि को गौरवान्वित करने का, समृद्ध बनाने का, गूर्जरमहाराज्य की स्थापना करने का श्रेय इन प्राग्वाटज्ञातीय महापुरुषों को ही है, जिनके चरित्र गूर्जर भूमि के इतिहास में स्वर्णाक्षरों' में लिखे हुये हैं । इस प्रकार इन पाँच सौ वर्षों के समय में प्राग्वाटज्ञातीय कुलों को गूर्जर भूमि में जाकर बसने के लिए यह बहुत बड़ा सीधा आकर्षण रहा है। इन वर्षों में जो भी कुल जाकर गूर्जर भूमि में बसे वे अधिकांशतः अहमदाबाद, धौलका, अणहिलपुरपत्तन आदि प्रसिद्ध नगरों में और इनके आस-पास के प्रान्तों में वसे थे और वे अत्र गूर्जर - पोरवाल कहे जाते हैं, परन्तु 'गुर्जर - पौरवाल' नाम बहुत ही कम प्रसिद्ध है ।
' ततो राजप्रसादात् समीपुर निवासितो वणिजः प्राग्वाटनामानो बभूवः । आदौ शुद्धप्राः द्वितीया सुराष्ट्रङ्गता किंचित् सौराष्ट्र प्राग्वाटा तदवशिष्टाः कुण्डल महास्थाने निवासितोऽपि कुण्डलप्राग्वाटा बभूवः । - उपदेशमाला प्रस्तुत इतिहास के पढने से भलिभांति सिद्ध हो जायगा कि प्राग्वाटज्ञातीय पुरुषों ने गुर्जर-भूमि की किस श्रद्धा, भक्ति
सेवायें की हैं।