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:: प्राग्वाट - इतिहास
२. भ० महावीर के निर्वाण के पश्चात्
३. स्थायी श्रावकसमाज का निर्माण करने का प्रयास
४. प्रावाभावकवर्ग की उत्पत्ति
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५. प्राग्वाट प्रदेश
६. शत्रुंजयोद्धारक परमार्हत श्रे० सं० जावड़शाह ७. सिंहावलोकन
द्वितीय खण्ड
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इस खण्ड की सम्पूर्ण रचना शिलालेख, प्रतिमालेख, प्रशस्तियां, प्रामाणिक हैं। इसमें मेरी कोई स्वतंत्र उपज नहीं मिलेगी। जहां उलझन दिखाई दी, वहाँ मैंने विचार करके अपने ढंग से उसको सुलझाने का प्रयत्न अवश्य किया है । इस खण्ड में निम्नवत् विषय आये हैं:
१. वर्तमान जैन कुलों की उत्पत्ति
ग्रंथों
के
अनेक
६
८
१५. महं० जिसधर द्वारा ३०० द्रामों का दान
१६. श्री अर्बुगिरितीर्थस्थ श्री विमलवसतिकाख्य चैत्यालय तथा हस्तिशाला अन्य प्राग्वाट बन्धुओं के पुण्यकार्य
१७. श्री जैन श्रमण संघ में हुये महाप्रभावक आचार्य और साधु
११
१५
१७
२६
आधार पर की गई
विद्वानों के मतों पर
पृ०
३१
४१
५६
६०
२. प्राग्वाट अथवा पौरवालज्ञाति और उसके भेद
३. राजमान्य महामंत्री सामंत
४. कासिन्द्रा के श्री शांतिनाथ - जिनालय के निर्माता श्रे० वामन
५. प्राचीन गूर्जर - मंत्री-वंश (विमल - वंश)
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६. अनन्य शिल्पकलावतार अर्बुदाचलस्थ श्री विमलवसतिकाख्य श्री आदिनाथ - जिनालय ८३
७. मंत्री पृथ्वीपाल द्वारा विनिर्मित विमलवसति - हस्तिशाला
६७
८. व्ययकरणमंत्री जाहिल
६. श्रे० शुभंकर के यशस्वी पुत्र पूर्तिग और शालिग १०. महामात्य सुकर्मा
११. ० हांसा और उसका यशस्वी पुत्र श्रे० जगहू
१००
१०१
१०२
१०३
१२. मंत्री - भ्राताओं का गौरवशाली गूर्जर - मंत्री-वंश
१०५
१३. अनन्य शिल्पकलावतार अर्बुदाचलस्थ श्री लूणसिंहवसतिकाख्य श्री नेमिनाथ - जिनालय १८७
१४. उञ्जयंतगिरितीर्थस्थ श्री वस्तुपाल- तेजपाल की टू'क
१६४
१६७
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