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:: प्राग्वाट-इतिहास:: में भी पहुँच गई थीं। परन्तु वस्तुतः इतिहास के प्रथम भाग के लेखन का कार्य वि० सं० २००२ आश्विन शु. १२ शनिबर तदनुसार ता० २१ जुलाई ई. सन् १९४५ से प्रारंभ हुमा और आज वि० सं० २००६ आश्विन शु. ८ शनिश्चर तदनुसार ता० २७ सितम्बर ई. सन् १९५२ को मेरे प्रिय दिन 'शनिश्चर' पर ही सानंदपूर्ण हो रहा है।
बागरा में वर्ष १ मास ६ दिन १ अर्ध दिन की सेवा से कार्य हुआ । सुमेरपुर में ,, ३ , ७, १ " " भीलवाड़ा में , -, ७ ॥ - "
२ १०१ पूरे दिन की सेवा से कार्य हुआ। भीलवाड़ा में १ ३ २४ " "
४ १ २५ पाठकसज्जन ऊपर लिखी तालिका से समझ सकते हैं कि लेखन में तो पूरे चार वर्ष १ मास और आज पर्यन्त दिन पच्चीस ही लगे हैं। इस अवधि में ही पुस्तकों का अध्ययन, भ्रमण आदि दूसरे कार्य तथा छोटे २ कई एक भ्रमण भी हुये हैं। मैंने भी साधारण अवकाश और गृष्मावकाश भी भुगता है । यद्यपि गृष्मावकाश में प्रायः कार्य अधिकतर चाल ही रक्खा है। गजरात और मालवा का भ्रमण तथा राणकपरतीर्थ गृष्मावकाश में ही किये गये हैं। फिर भी आप सज्जनों को तो पूरे १ वर्ष प्रतीक्षा करते हो गये हैं। इतिहास कल्पना का विषय नहीं है। यह कार्य शोध और अध्यन पर ही पूर्णतः निर्भर है। जितना अधिक समय शोध और अध्ययन में दिया जाय, उतना ही यह अधिक सुन्दर, सच्चा और पूरा होता है। फिर भी पाठकों से उनकी लंबी प्रतीक्षा के लिये क्षमा चाहता हूं।
अंतिम निवेदन मैं जितना लिख चुका हूँ. प्राग्वाटज्ञाति का इतिहास इतना ही हो सकता है अथवा हम जितनी साधनसामग्री एकत्रित कर सके हैं, अब इससे अधिक सामग्री प्राप्त होने वाली नहीं है और हम जितना श्रम और समय दे सके हैं, उतना समय और श्रम अब इस गिरती दशा में लगाने वाले नहीं मिल सकेंगे-हमारे ये भाव कभी नहीं हो सकते । अब तो पूर्वजों के गौरवशाली इतिहास की ओर इस ही ज्ञाति के पुरुषों का ही केवल मात्र नहीं, अन्य जैन अजैन सर्व ही भारतीय ज्ञातियों, वर्गों, समाजों के ज्ञाति एवं धर्म का अभिमान करने वाले विचारशील, परमोत्साही, विद्वान्, समाजसेवक श्रीमंतों का ध्यान अत्यधिक आकर्षित हो चला है। इसका यह परिणाम बहुत ही निकटतम भविष्य में आने वाला है कि जिन ज्ञानभण्डारों के तालों को जंग खा गया है, वे ताले अब खोल दिये जावेंगे और उन भण्डारों में रही हुई साहित्य-सामग्री को प्रकाशित किया जायगा। इस ही प्रकार अगणित शिलालेख, प्रतिमालेख, ताम्रपत्रलेख भी जो अमी तक शब्दान्तरित नहीं किये जा सके हैं, वे सर्व आगे आने वाली होनहार संतति के हाथों प्रकाश में आवेंगे और तब हमारे इस इतिहास जैसा इस ज्ञाति का ही कई गुणा इतिहास बन सके उतनी साधन-सामग्री प्राप्त हो जावेगी। इस ही प्रकार अन्य ज्ञाति, समाज एवं कुलों के इतिहासों के विषय में समझ लीजिये।