Book Title: Tandul Vaicharik Prakirnakam
Author(s): Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
View full book text
________________
4. ]
तन्दुलवैचारिकप्रकोर्णकम्
सुत्तयसुकयसोहे पिणडगेविज्जे अंगुलिजग-ललि. यंगयललियकयाभरणे नाणामणि-कणगरयण-कडगतुडियथंभियभुए अहियख्वे सस्सिरीए कुडलुज्जो. वियाणणे मउडदित्तसिरए हारुत्थयसुकय-रइयवच्छे पालंबपलंबमाण-सुकयपडउत्तरिज्जे मुद्दियापिंगलंगुलिए नाणामणि-कणग-रयण-विमलमहरिह-निउणीविय--मिसिमिसिंत-विरइय-सुसिलिट्ठ-विसिह-ल. आविडवीर-वलए, किं बहुणा ? कप्परक्खए चेव अलंकियविभूसिए सुइपयए भवित्ता अम्मापियरी अभिवादयिजा ।
तए णं तं पुरिसं अम्मापियरो एवं वइज्जा--जीव पुत्ता ! वाससयंति, तंपि याई तस्स नो बहुयं भवइ, कम्हा ?, वाससगं जीवंतो वीसं जुगाइं जीवह, वीसई जुगाई जीवंतो दो अयणसाइ जीवइ, दो अयणसयाई जीवंतो छ उऊसयाई जीवइ, छ उऊसयाई जीवंतो वारस माससयाई जीवह, बारस माससयाई जीवंतो चउवीसं पक्खसयाई जीवइ, चउवीसं पक्खसयाई जीवन्तो छत्तीसं राइंदियसहस्साई जीवइ, छत्तीसराइंदियसहस्साई जीवंतो दस असीयाइ मुहुत्तसयसहस्साई जीवह, दसअसीयाई मुहुत्तसयसहस्साइं जीवंतो चत्तारि उस्सास

Page Navigation
1 ... 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166