Book Title: Tandul Vaicharik Prakirnakam
Author(s): Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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तन्दुलगैचारिकप्रकोर्णकम् [१४१ कम्मेहिं सिपियाईहिं पुरिसे मोहंतित्ति महिलाओ २ पुरिसे मत्ते करंतित्ति पमयाओ ३, महंतं कलिं जणयंतित्ति महिलियाओ ४, पुरिसे हावभावमाईहिं रमंतित्ति रामाओ ५, पुरिसे अंगाणुराए करंतित्ति अंगणाओ ६, नाणाविहेसु जुद्धभंडणसंगामाडवीसु मुहाणगिण्हणसोउण्हदुक्खकिलेसमाइएमु पुरिसे लालंनित्ति ललणाओ ७, पुरिसे जोगनिओएहिं वसे ठावंतित्ति जोसियाओ८, पुरिसे नाणाविहेहिं भावेहिं वण्णंतित्ति वणियाओ ९, काई पमत्त भावं काई पणयं सविन्भमं काई ससई सासिव्व ववहरंति काई सत्तव्व रोरो इव काई पयएसु पणमंति काई उवणएसु उवणमंति काई कोउयनमंति १०, काई सुकदक्वनिरिक्खिएहिं सविलासमहुरेहिं उवहसिएहिं उवग्गूहिएहिं उवसद्देहिं ११, गुरु(गुज्झ)गदरिसणेहिं १२, भूमिलिहणविलिहणेहिं च आरुहणनट्ट
हिं च बालयउवगृहणेहिं च अंगुलिफोडणथणपीलणकडितडजायणाहिं तज्जणाहिं च १३, अवि याई ताओ पासो विव सिउं जे पंकुव्व खुप्पिङ जे मच्चव मरिउं जे अगणिव्व डहिउं जे असिव्व छिजिउं जे १४, २॥ सूत्रं १८ ॥
'अवि याईति पूर्ववत् 'तासिं इ०' तासामुक्तवक्ष्यमा

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