Book Title: Tandul Vaicharik Prakirnakam
Author(s): Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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तन्दुलपैचारिकप्रकोर्णकम् [११३ रागेण न जाणंतिय वराया कलमलस्स निडमणं । ताणं परिणंदंति फुल्लं नीलुप्पलवणं व ॥ ८९ ॥ कित्तियमित्तं वन्ने? अमिज्झमइयंमि वचसंघाए। रागो हु न कायव्यो विरागमूले सरीरंमि ॥१०॥ किमिकुलसयसंकिपणे असुइमचुक्खे असासयमसारे । सेयमलपुव्वडंमी निव्वेयं वच्चइ सरोरे दंतमलकण्णगूहग-सिंघाणमले य लालमलबहले। एयारिसे बीभच्छे दुगुणिज्जमि को रागो ? ॥९२।। को सडणपडणविकिरिण-विद्धंसणचयणमरणधम्ममि । देहमि अहीलासो ? कुहियकढिणकट्ठभूयंमि ॥१३॥ कागसुणगाण भक्खे किमिकुलभत्ते य वाहिभत्ते य । देहमिमच्चु(मच्छ)भत्ते सुसाणभत्तंमि को रागो ? ९४ असुईअमिझपुन्नं कुणिमकलेवरकुडि परिसवंति । आगंतुय संठवियं नवच्छिद्दमसासयं जाण (जाणे)।९५। पिच्छसि मुहं सतिलयं सविसेसं रायएण अहरेणं । सकडक्खं सविआरं तरलच्छि जुव्वणित्थीए॥१६॥ पिच्छसि बाहिरमटुं न पिच्छसी उज्झरं कलिमलस्स। मोहेण नच्चयंतो सीसघडीकंजियं पियसि ॥७॥ सीसघडीनिग्गालं जं निट्ठहसि दुगुछसी जं च । तं चेव रागरत्तो मूढो अइमुच्छिओ पियसि ॥९८॥

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