Book Title: Naychakra Sara
Author(s): Meghraj Munot
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpmala

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Page 11
________________ प्रशस्ति. श्री जिन आगम के विषय ( १ ) द्रव्यानुयोग ( २ ) चरण करणानुयोग (३) गणितानुयोग. (४) धर्मकथानुयोग ये चार अनुयोग कहे हैं. जिस में छे द्रव्य और नव तत्त्व उनके गुण पर्याय स्वभाव परिणमन को जानना यह द्रव्यानुयोग है. इस तरह पंचास्तिकाय का स्वरुप कथनरुप है. उस पंचास्तिकाय में एक - त्मानामक अस्तिकाय द्रव्य है वे आत्मा अनन्ते हैं. जिस के मुख्य दो भेद हैं. ( १ ) सिद्ध निष्पन्न सर्व कर्मावर्ण दोष रहित संपूर्ण केवलज्ञान केवलदर्शनादि गुण प्रगटरूप अखंड, अचल, अव्याबाधानंदमयी लोक के अन्तमें विराजमान स्वरुप भोगी हैं उनको सिद्ध जीव कहते हैं. यह सिद्धता आत्मा का मूल धर्म है. उस सिद्धता की इहा करके उनकी यथार्थ सिद्धता को पहिचाने और जो सिद्धावस्था निष्पन्न है उन सिद्धों का बहुमान करना और अपनी भूलसे अशुद्ध चेतनापने परिणत हो कर ज्ञानावर्णादि कर्म बांधे हैं. उनको टाल कर सम्पूर्ण सिद्धता की रुची करनी यह हित शिक्षा है. 5 दूसरा भेद संसारी जीवों का है. जिसने आत्म प्रदेशों से स्वकर्तापने कर्म पुद्गलों को ग्रहण किया है. तथा कर्म पुगलों का लोली भाव हैं. वे मिध्यात्वगुणस्थानक से यावत् अयोगी केवली गुणस्थानक के चरम समय पर्यंत सब संसारी जीव कहलाते हैं. उनके भी दो भेद हैं. एक प्रयोगी दूसरा सयोगी. सयोगी के दो भेद, एक सयोगी केवली दूसरा छद्मस्थ. छद्मस्थ के दो भेद एक मोही दूसरा समोही. समोही के दो भेद एक अनुदित मोही दूसरा उदितमोही. उदितमोही के दो भेद एक सूक्ष्ममोही दूसरा बादरमोही. बादरमोही के दो भेद एक श्रेणी निष्पन्न दूसरा श्रेणी रहित श्रेणि रहित के दो भेद एक संयमी विरति दूसरा अविरति अविरति के दो भेद एक सम्यक्त्वि दूसरा मिध्यात्वी. मिथ्यात्वी के दो भेद एक ग्रन्थि भेदी दूसरा ग्रन्थि अभेदी. ग्रन्थि

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