Book Title: Catalogue of Manuscripts at Jesalmer
Author(s): C D Dalal
Publisher: Central Library

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Page 78
________________ IN THE BIG BHANDAR AT JESALMERE. श्रीचंद्रगच्छममिनंदति शास्ति पाति तीर्थ प्रभावयति संप्रति जैनचंद्र। यः श्रीजिनेश्वर इवाप्रतिमैर्वचोभिवृत्तैरिव त्रिभुवनं पृणंति प्रतीतः ॥ १०॥ तदाज्ञया सद्गुणसर्वदेवाचार्यैः समं जेसलमेरुदुर्गे । स्थितो गिरैषां खपरोपकारहेतोः समाधि मनसोऽभिलष्यन् ॥ ११॥ शरवसुरविसंख्ये वैक्रमे वत्सरेऽस्मिन्वहति तपसि मासे शुक्लपक्षे दशम्यां । जिनपतिगुरुशिष्यः पूर्णभद्राभिधानो गणिरकृत चरित्रं धन्यगोभद्रसून्वोः ॥१२॥ चरितमिदमखिलं निर्मलविद्याकूपारपारदृश्वानः । वाचकमुख्याः सूरप्रभाभिधाः शोधयांचक्रुः ॥ १३ ॥ धन्यसाधुमुनिशालिभद्रयोः प्रीतिकारि चरितं विधापयत् (ता)। पुण्यमत्र समुपार्जितं मया स्यात्ततो जगदिदं सुखास्पदम् ॥ १४ ॥ गगनसरसि यावनिर्मले शारदेंदुः कलयति कलहंसस्फारलीलातिरेकं । जगति जयति(तु!) तावत्पठ्यमानं सुधीभिः सुचरितमिदमुर्वे(च्चै)र्धन्यगोभद्रसून्वोः ॥ १५॥ सर्वसंख्यया प्रशस्तिरियं श्लोक २९ चरितं तु सर्वसंख्यया श्लोक १४९०. (2) अतिमुक्तचरित्र [by पूर्णभद्र ]. leaves 157-347. Beg:-प्रथमजिनवरेंद्रः प्रह्वसर्वामरेन्द्रः प्रदिशतु स सुखानि श्रेयसे श्रीमुखानिः । व्रतमहसि महिष्ठे सद्यवांकूरपूराविव चिकुरवतंसौ व्यावभस्ता(?)यदंसौ ॥ १॥ End:-स्थानांगपंचमसदंगमृषिस्तवेभ्यो दृष्ट्वा जडप्रकृतिनापि मया विदृब्धं । चित्रं चरित्रमिह देवगुरुप्रसादाचंचन्मतेवरमुनेरतिमुक्तकस्य ॥१८॥ श्रीमत्प्रहादनपुरवरे पूर्णभद्रो गणिर्दाक् शिष्यः श्रीमजिनपतिगुरोश्चारु चक्रे चरित्र। चित्ताश्चर्य विजयतनयस्यातिमुक्तस्य साधो द्वर्यष्टार्काब्दे दितिसुतगुरौ कार्तिके पूर्णमास्यां ॥ २१ ।। समाप्तं चेदमतिमुक्तकमुनिचरितं ।। ( 3 ) उवासग( उपासक ) दशाचूर्णि. leaves 348-385. 14 x 2. Beg:-जस्स [पय नहपहाभरपंजरमज्झट्ठिया तिलोई वि । __पडिहासइ निचलसालहिव्व तं नमिय जिणवीरं ॥१॥ End:-सप्तमांगचूर्णिः ग्रंथानं श्लोक १०१। मंदपाटे वरग्रामवास्तव्यश्रे० अभयीश्रावकपुत्रसमुद्धरावकभार्यया कुलधरपुत्र्या सावितिश्राविकया धन्यशालिभद्रकृतपुण्य(दातिमुक्त?)महर्षिचरितादिपुस्तिका खश्रेयोनिमित्त लेखिता । संवत् १३०९। 11. भगवती (मूल) (त्रुटित). Size 25 x 2. (मु.) __End:-समत्ता भगवती संवत् १११-कार्तिकशुदि ६ रवौ उत्तराषाढनक्षत्रे षट्त्रिंशद्वेलाकूलाभरणस्तंभतीर्थाभिधानवेलाकूलावसितेन गौडान्वये प्रसूतकायस्थगुंदलात्मजसुभच्छराजांगजसेडाकेन भगवतीपुस्तको (स्तिके!) यं समलेखि ॥ 12. न्यायकंदली by श्रीधर. 288 leaves. 14 x 28. (मु.) 13. आवश्यकवृत्ति(प्रदेशव्याख्या)टिप्पन by मलधारिहेमचंद्र. (मु.) 315 leaves. 14}x'.. 1 H. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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