Book Title: Bauddh tatha Jain Dharm
Author(s): Mahendranath Sinh
Publisher: Vishwavidyalaya Prakashan Varanasi

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Page 23
________________ १ तथा नपर्म माता-पिता की मृत्यु तक उन्हींके घर में रहे और बाद में जब वह तीस वर्ष के हो गये तब उन्होंने आध्यात्मिक जीवन म प्रवेश किया । मिक्ष बन जाने के पश्चात जानपिपासु वर्षमान तपस्या मे लीन हो गये। विभिन्न विघ्न-बाधाओं को सहन करते हुए भगवान महावीर लगभग बारह वष तक कठिन तपस्या करते रहे। तरहव वष वैशाख शुक्ल दशमी के दिन जम्भिक ग्राम के बाहर ऋजुकला नदी के उत्तर तट पर एक शालवृक्ष के नीचे उन्हें पूर्ण ज्ञान प्राप्त हो गया अर्थात जैसा कि कहा जाता है वह केवली हो गये। इस साधना के फल स्वरूप वह तीथकर बने और अपने जीवन का शेषाश उन्होंने पम के प्रचार और अपने मुनिसंघ को सगठित करन में बिताया। जैनधम के दोनो सम्प्रदायो (श्वेताम्बर एव दिगम्बर ) की परम्परा से ज्ञात होता है कि भगवान महावीर का निर्वाण ५२७ ई पू के आसपास लगभग ७२ वष की आयु म पावापुरी म हुमा था जो पटना जिले में बिहारशरीफ के समीप लगभग सात मील की दूरी पर स्थित है। ___ बौद्धधर्म के विपरीत जैनधर्म का प्रभाव भारत के अन्दर ही सीमित रहा और भारत के अन्दर भी इसका प्रभाव अपने जम के प्रदेश के अदर अपेक्षाकृत कम तथा उसके बाहर विशषत पश्चिम और दक्षिण म अधिक रहा। महामा बद्ध को भांति भगवान महावीर को भी अपने धर्म के प्रचार प्रसार के लिए बनक राजवशो का सहयोग मिला । लिच्छवि-नरेश चेटक स्वय महावीर का शि य था। ज्ञाताधमकथा तथा अनुत्तरोपपासिक दशाग आदि आगम ग्रन्थो से भी ज्ञात होता है कि बिम्बिसार का पुत्र अजातशत्रु पम्पानरेश दधिवाहन तथा उसकी पत्री चदना आदि सभी महावीर के माग के अनुयायी बने । महावीर ने अपने अनुयायियो को चार भागों म विभाजित किया था-मुनि आर्यिका धावक और श्राविका । मुनि बोर आर्यिका घर-गृहस्थी का त्यागकर सबसे दूर रहनवाले श्रमण एव श्रमणी के रूप में विभाजित ५ तथा अन्तिम दो बग श्रावक और श्राविका के नाम से जाने जाते थे जो घर-गृहस्थी में रहकर जैनषम का आचरण करते थे। यही उनका चतुर्विध जैन सघ था। १ हिरियन्ना एम भारतीय दशन की रूपरेखा प १५७ । २ पाय रामबी प्राचीन भारतीय कालगणना एव पारम्परिक सवत्सर प २१२२। ३ ज्ञाताधमकया अध्याय १ । ४ अनुत्तरोपपातिकदशा तृतीय वर्ग सूक्क ४ ।

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