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भूमिका २५
विभिन्न विषयों का प्रतिपादन करते हुए इस प्रन्थ में ३६ अध्ययन है । इनमें आचार-सम्बन्धी और तस्वज्ञान सम्बधी विवेचन है । आचार से सम्बन्ध रखनेवाले विषय है -- २रा परीषह ३रा चतुरङगीया ४था असंस्कृत ५वf अकाममरण ठा क्षुल्लक निधी ७ एलक ८वां कापिलीय ९वाँ नमिप्रव्रज्या १ व द्रुमपत्रक ११व बहुत पजा १२वीं हरिकेशीय १३व चित्तसम्भतीय १४व इषुकारीय १५ समिक्ष १६व ब्रह्मचय समाधि स्थान १७६ पाप श्रमणीय १८ सयतीय १९ मृगापुत्र व महानिग्रन्थीय २१वीं समुद्रपालीन २२व रथनेमी २३व केशी गौतमीय २४ समितीय २५ यशीय २६वी समाचारी २७व खलङकीय २८ मोक्षमाग गति २९व सम्यक्त्व-पराक्रम ३ व तपोमाग ३१वीं चरणविषि ३२ व प्रमाद स्थानीय ३४व लेश्या और ३५व अनगार । तत्त्वज्ञान-सम्बन्धी अध्ययनो में ३३व कमप्रकृति और ३६वीं जीवाजीव विभक्ति है । लेकिन इन अध्ययनों में एक दूसर से काफी निरूपता है ।
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इन ३६ अध्ययनो के वणन नीच प्रस्तुत किये जा रहे हैं४८ गाथाओ से युक्त प्रथम अध्ययन म विनयषम का वर्णन इसम भिक्ष को भिक्षचर्या विनीत एव अविनीत शिष्यों के गुण-दोषादि के गुरु के कतव्यों का भी वणन है ।
दूसरे अ ययन म साधु के लिए २२ परीषह बताये गये हैं । सूत्र गद्य खण्ड मे और अन्त के ४६ श्लोक पद्य रूप में निबद्ध है । तीसरे अध्ययन में मोक्ष प्राप्ति के साधन मनुष्यत्व श्रुति धारण करने की शक्ति इन चार वस्तुओं को दुलभ कहा गया है। २ गाथायें हैं ।
किया गया है । साथ ही साथ
प्रारम्भ के तीन
श्रद्धा और सयम इस अध्ययन में
चो अध्ययन की तेरह गाथाओ म ससा की क्षणभंगुरता का प्रतिपादन किया गया है तथा भारण्ड पक्षी की तरह अप्रमत्त रहने का उपदेश दिया गया है। पांचव अकाम-मरण नामक अध्ययन में भिक्ष और गृहस्थ के सयमी जीवन की तुलना है और सुकृत गृहस्थ को सुगति-देवगति तथा बाल व्यक्तियों के अकाम मरणादि के बारे में कहा गया है ।
१ प्राकृत भाषा और साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास पू १९३ ।
२ उत्तराध्ययन सूत्र २।२-४५ ।
३ वही ३३१ ।
४ वही ४१६ ।
५ वही ५१२ ।