Book Title: Bauddh tatha Jain Dharm
Author(s): Mahendranath Sinh
Publisher: Vishwavidyalaya Prakashan Varanasi

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Page 134
________________ १९६ बोद्ध तथा जनधर्म रहती है। फिर व्यक्ति प्रमादवाले नीचे के गुणस्थानो में आ जाता है । प्रमाद पाँच प्रकार का बतलाया गया है। कही ८ व १५ का भी । प्रमाद के पाँच प्रकार हैं। मद्य विषय कषाय निद्रा और विकथा | -- १ मा २ विषय आसक्ति भी आमचतना को कुण्ठित करती है इसलिए प्रमाद कही जाती है । पाँचो इर्श द्रयो के विषयों का सेवन । ३ कवाय क्रोध मान माया और लोभ य चार प्रमख और मदता के आधार पर १६ प्रकार की होती हैं कषायों के जनक हास्यादि प्रकार के मनोभाव उपकषाय है । कषाय और उपकषाय के भेद मिलकर २५ होते ह । मनोदशाए जो अपनी तीव्रता कषाय कही जाती है । इन ४ निवा अधिक निद्रा लेना निद्रा समय का अनुपयोग है । ५ विकur जीवन के साध्य और उसके साधना माग पर विचार न करत हुए अनावश्यक चर्चा करना। विकथाए चार प्रकार की - ( १ ) राज्य सम्बन्धी ( २ ) भोजन सम्ब बी ( ३ ) स्त्रियो के रूप सौन्दय सम्बन्धी और ( ४ ) देश सम्बधी | इस तरह प्रमाद के अ तगत विषय और कषाय को समिलित कर लेन से कमब व का वह मख्य कारण बन जाता है । इसलिए प्रमाद से बच रहन और अप्रमत्त साधना करने का विधान किया गया है । अप्रमत्त अर्थात जागरूकता आत्मजागरण और प्रमाद अर्थात् आम विस्मृति बेभान और आलस्य की अवस्था | आमोनति के लिए सबसे पहले जागरूकता की आवश्यकता होती है। महावीर का जीवन अप्रमत्त था । वे सतत आत्म जागरण मे लीन रहते थे । उत्तराध्ययनसूत्र म समय मात्र भी प्रमाद न करन का जा महान् सन्देश भगवान् महावीर ने दिया है वह साधको के लिए पुन पुन स्मरणीय है। इस ग्रन्थ के दसव १ उत्तराध्ययन नियक्ति १८ । २ जैन बौद्ध तथा गीता के आचार दशनो का तुलनात्मक अध्ययन भाग १ प ३६१ । वही ।

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