Book Title: Bauddh tatha Jain Dharm
Author(s): Mahendranath Sinh
Publisher: Vishwavidyalaya Prakashan Varanasi

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Page 78
________________ १२ बोहतवा जनधर्म ४ मास्मवसति मुक्त होने का अथ है आत्मस्वरूप की प्रासि । अत आमवसति या आम प्रयोजन की प्राप्ति का अथ है मोक्ष की प्राप्ति । ५ अनुत्तरगति प्रधानमति घरगति और सुगति बम में सामाय रूप से चार गतियां मानी गयी ह जो ससार भ्रमण में कारण हैं । परन्तु मोक्ष एसी गति है जिसे प्राप्त कर लेने पर पुन ससार म आवागमन नही होता है । इससे श्रेष्ठ कोई गति नहीं है । अत इसे अनुत्तरगति कहा गया है । यद्यपि देव और मनुष्यगति को प्रथम कही कही सुगति कहा गया है परन्तु वह ससारापेक्षा से कहा गया है । वस्तुत सुगति मोक्ष ही ह । ससार को चार गतियों से भिन्न होने के कारण यह पचमगति ह । ६ ऊर्ध्वविशा मुक्तात्माय स्वभाव से ऊध्वगमन स्वभाववाली है और जहाँ मुक्त जीव निवास करते ह वह स्थान लोक के ऊपरी भाग म ह । अत मोम को प्राप्ति का अर्थ है ऊर्ध्व दिशा म गमन । ७ दुरारोह निर्वाण प्राप्त करना अत्यन्त कठिन होने से इसे दुरारोह कहा गया है । अन्य म कहा गया है कि लोक के अग्रभाग म एक एसा स्थान है जहां पर जरा और मृत्यु का अभाव है तथा किसी प्रकार की याधि और वेदना की भी वहां पर सत्ता नही एव वह स्थान ध्रव निश्चल अर्थात शाश्वत ह परन्तु उस स्थान तक पहुँचना अत्यन्त कठिन है । तात्पय यह है कि उस स्थान पर पहुचने के लिए सम्यक दशन सम्यक ज्ञान और सम्यक चारित्र ये तीन साधन है । इनके द्वारा ही वहां पर पहुंचा जा सकता है परन्तु इनका सम्यकतया सम्पादन करना भी बहुत कठिन है। १ अप्पणो वसहि वए। उत्तराध्ययन १४४८ तथा इह कामाणियट्टस्स अत्तटठे अबराई। वही ७२५ । २ पत्तो गइमणुत्तर। वही १८३८३९४ ४२ ४३ ४८ आदि । गह पहाण च तिलोगपिस्सुय । वही १९९७ । जीवा गच्छन्ति सोग्गइ वही २८१३ । सिद्धि वरगइ गया। वहो ३६६६७ । ३ उडढ पक्कमई विस। वही १९८२ । ४ वही २३१८१८३।

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