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११४ : बौद्ध तथा जनधर्म
उपचित भी हैं नियत विपाक कम हैं। दूसरे वे कम जो तीन प्रसाद ( श्रद्धा ) और तीव्र कलेश (राग-द्वेष ) से किय जात है नियत विपाक कम है। बौद्ध-दशन की यह धारणा जैन-दशन से बहुत कुछ मिलती जुलती है । लेकिन प्रमुख अन्तर यही है कि जहाँ बोद्ध दशन तीव्र श्रद्धा और तीव्र राग द्वेष दोनो अवस्था म हानेवाले कम को नियत विपाकी मानता है वहाँ जैन-दशन मात्र राग द्वेष ( कषाय ) की अवस्था में किये हुए कर्मों को ही नियत विपाकी मानता है । दोनो ही इस बात से सहमत है कि मातृवध पितृबघ तथा धम सघ और तीथ तथा व प्रवतक के प्रति किये गये अपराध नियत विपाकी होते हैं ।
कमवाद के दार्शनिक और नतिक पक्ष के अतिरिक्त भगवान बुद्ध उसके सामा जिक पक्ष म भी विश्वास करत थे । सामाजिक क्षेत्र में वह जन्मजात वणव्यवस्था में बिल्कुल विश्वास नही करत थे। उनका कहना था कि कोई भी वर्णव्यवस्था जन्म के आधार पर स्थापित नही की जा सकती है । बुद्धोपदिष्ट चातुवर्णी शुद्धि का आधार कम ही है । चाह शूद्र हो या अन्य कोई प्राणी यदि वह स्मृति प्रस्थान आदि की भावना करता है तो निर्वाण का साक्षाकार करता है । कर्म मनुष्य मनुष्य म भेद नही करता । पुण्य कर्म से आयु की वृद्धि होती है और बत्तीस महापुरुष-लक्षण भी मनुष्य पूर्वज म के किय कर्मों के परिणामस्वरूप पाता है । कहने का तात्पय यह है कि विश्व की व्यवस्था में कम ही प्रधान है । इसलिए मनुष्य को अधिक-से-अधिक शुभकम करना चाहिए । इसीलिए भगवान् बुद्ध ने कम प्रतिशरण बनने का उपदेश दिया था । वे बद्धशरण और कमशरण म कोई भेद नही मानते थे। कम अच्छा है वह बुद्ध के समीप ह चाहे वह उनसे सौ जिसका कर्म बुरा है वह बुद्ध से दूर है चाहे वह उनकी उनके पैरो के पीछ पैर रखता हुआ हो चल रहा हो । कमवाद का सिद्धा त बौद्धधम की आधारशिला है ।
जैन-दशन म कम शब्द के अनेक अथ मान गये है । साधारणत कम शब्द का
उनका कहना था कि जिसका
दूरी पर भी हो ।
योजन की सघाटी के छोर को पकडकर इस प्रकार हम देखते हैं कि
१ जैन बौद्ध तथा गीता के आचार दशनो का तुलनात्मक अध्ययन भाग १ पृ ३२४ ।
२ अग्गन्न-सुत्त ( दीघनिकाय ३ | ४ ) ।
३ चक्कवति - सोहनाद-सुस ( दीघनिकाय ३१३ ) ।
४ लक्खणसुत ( दीघनिकाय ३७ ) |
५ सघाटित ( इतिवृतक ) |