Book Title: Bauddh tatha Jain Dharm
Author(s): Mahendranath Sinh
Publisher: Vishwavidyalaya Prakashan Varanasi

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Page 153
________________ मम और विभिन्नता २५ विभिन्न मासिक एक गोवावि उत्तराध्ययनसूत्र में प्राप्त अनेक सन्दमों से यह ज्ञात होता है कि वर्गों के प्रति रिक्त बहुत सारी छोटी-छोटी उपजातियां भी थीं । जैसे-सवार 'भारवाहक कर्षक सारपि बढ़ई लोहकार ' गोपाल भण्डपाल चिकित्साधाय नाषिक और विविध प्रकार के शिल्पी मादि। इनके अतिरिक कुछ वर्गसकर बातियों का भी उल्लेख मिलता है जैसे बुक्कुस और श्वपाक । उत्तराध्ययनसूत्र म उपर्युक्त जातियों के अतिरिक्त गोत्रों कुलो और वशां मादि का भी उल्लेख मिलता है । गोत्रों में काश्यप गोतम गर्ग और वशिष्ठ कुलों में १ हयमदद व वाहए। उत्तराध्ययन ११३७ । २ अबले जह भारवाहए। वही १ ॥३३॥ ३ पले सु बीयाइ ववन्ति कासगा। वही १२॥१२॥ ४ अह सारही विचिन्तेइ । वही २७७१५ तथा देखिए-वही २२।१५ १७ आदि । ५ वडढईहि दुमो विव। वही १९६६ । ६ षवेडमुटिठमाईहिं कुमारेहिं अय पिव । ताडिओ कुटिटओ भिन्नो चुण्णिओ य अणन्तसो ॥ वही १९६६७ । ७ गोवालो भण्डवालो बाणहातब्बडणिस्सरो। वही २२१४६ । ८ वही। ९ उवट्टिया मे मायरिया विज्जा-मन्तति गगा। वही २ ।२२ । १ जोवो बुच्चा नाविमो। वही २३१७३। ११ माहण भोइय विविहा य सिप्पिणो । वही १५।९। १२ महावीरेण कासवेण पवहए । वही २९ का प्रारम्भिक गद्य तथा उत्तराध्ययनसूत्र एक परिशीलन १ ३९८ ३९९ ॥ १३ तहा मोत्तेण गोयमो। उत्तराध्ययन १८।२२ तथा २२।५ । १४ परे गणहरे मग्गे। वही २७१। १५ वासिटिठ ! भिक्खायरियाइ कालो। वही १४१२९ ।

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