Book Title: Bauddh tatha Jain Dharm
Author(s): Mahendranath Sinh
Publisher: Vishwavidyalaya Prakashan Varanasi

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Page 120
________________ 1५४ बसपा अब कोई व्यक्तिबोधर्म ग्रहण करता है तब उसे बद्ध धर्म और सब की शरण जाने के साथ ही पचशील के पालन की प्रतिज्ञा करनी पडली है। पचशील सदाचार के पांच सार्वभौम नियम हैं । ये इस प्रकार है - १ प्राणातिपात अर्थात जीव हिंसा से विरति २ मुसाबाद या असत्य भाषण से विरति ३ अदिन्नादान या चारी से विरति ४ परदारन्धया परस्त्रीगमन से विरति और ५ सुरामेरयपानन्ध अर्थात मद्यपान से विरति । जो व्यक्ति इनका पालन करता है उसका आचरण पवित्र माना जाता है । पंचशील का आरम्भ होता ह पानाति पाता वेरमणि से जिसका तात्पय है हिंसा से विरत रहना और कम तपा वाणी को सयमित रखना। चंकि पचशील आचार के नैतिक नियम निर्धारित करते हैं अत इन्ह शिक्षा पर भी कहत है । क्योंकि ये गृहस्पमात्र के लिए माचरणीय ठहराय गय है इसलिए इन्हें गृहस्थशील भी कहत है। सामान्य जन के लिए नित्य आचरणीय होने के कारण इनको नित्यशील भी कहते हैं। और क्योकि पवित्र गुणसम्पन्न बाय जन इसका अनुपालन करते है इसे मायकण्ठ भी कहा गया ह । नीच किञ्चित विस्तार से पचशीलो म प्रत्येक का विवेचन किया गया है। १ प्राणातिपात विरमण अर्थात् अन्य जीवो की हिंसा से विरत रहना । जो व्यक्ति अन्य जीवों की हिंसा से नितान्त बचा रहता है वह मरणोपरान्त देवलोक को प्रास होता है। प्राणातिपात में प्राण और अतिपात दो शब्द है । प्राण शब्द से जीव का बोध हाता है और अति पात का अर्य शीघ्रता से गिरना अर्थात सवों के प्राणो का अतिशीघ्रता से या पृथक १ यो पाणमतिपातति मुसावावम्ब भासति । लोके अदिन्न मादियति परदारन्च गच्छति ।। सुरामरयपानन्ध यो नरो अनुयुम्जति । इधवमसा लोकस्मि मल खनतिअत्तनो । धम्मपद २४६ २४७ तथाअगुत्तरनिकाय ८५२५ बौद्धधर्म-शन प २४ ।

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