Book Title: Bauddh tatha Jain Dharm
Author(s): Mahendranath Sinh
Publisher: Vishwavidyalaya Prakashan Varanasi

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Page 104
________________ बरसान-माचार १६ अष्टांगिक माग बुट शासन में निश्चय ही एक अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान रखता है । अपने सर्वप्रथम प्रवचन (धम्मचक्कपबत्तनसुत्त ) में भगवान् ने पञ्चवर्गीय भिक्षओं को इसका उपदेश दिया था और मध्यमा प्रतिपदा के साथ इसकी एकात्मकता दिखाई थी । यही वह माग है जिसे तथागत ने खोज निकाला । मध्यमा प्रतिपदारूपी आर्य अष्टागिक मार्ग अरण धम है और वही ठीक मार्ग है। यह मार्ग आँख खोल देनेवाला है शान करा देनेवाला है। यह शासन अभिज्ञा बोष और निर्वाण की ओर ले जानवाला है। भगवान ने कहा है कि निर्मल ज्ञान की प्राप्ति के लिए यही एक मार्ग है और दूसरा कोई मार्ग नही । इस मार्ग पर चलन से तुम दुख का नाश करोगे। सम्पूण धम्मपद के अनुशीलन करने से यह ज्ञात होता है कि बौरवम के अनुसार शील समाधि और प्रज्ञा ये तीन मुख्य साधन है । अष्टागिक मार्ग इसी साधना त्रय का पलवित रूप है। बौधर्म में आचार की प्रधानता है। तथागत निर्वाण के लिए तवज्ञान के जटिल मार्ग पर चलने की शिक्षा कभी नहीं देत प्रत्युत तत्त्वज्ञान के विषय प्रश्नों के उत्तर म वे मौमावलम्बन ही श्रेयस्कर समझते हैं। आधार पर ही उनका प्रधान बल है। यदि अष्टागिक मार्ग का पालन किया जाय या आश्रय लिया जाय तो शान्ति अवश्य प्राप्त होगी। भगवान के उपदेश का यही सार है । मार्ग पर मारूद होना अत्यन्त आवश्यक है। बद्ध ने भिक्षुओं से कहा-उद्योग तुम्हें करना होगा । उपदेश के श्रवणमात्र से दुखनिरोध कथमपि नही होगा। उसके लिए आवश्यक ह उद्योग करना। तथागत का काय तो केवल उपदेश देना है। उस पर चलना भिक्षओ का काय है। उस माय अष्टागिक मार्ग म आरूढ़ होकर पान म रत होनेवाले व्यक्ति ही मार के बन्धन से मुक्त होते हैं अन्य पुरुष नहीं। इसलिए भिक्ष को तथागत के उपदिष्ट धम में उद्योगी हो सत-अथ में अप्रमादी एव मात्मसयमी १ अरणविभगसुत्तन्त मज्झिमनिकाय ३३४.९ । २ चम्मचकपवत्तनसुत्त। सयुत्तनिकाय । ३ एसोवमग्गोनत्यन्नो दस्सनस्स विसतिय । एतं हि तुम्हे पटिपज्जपमारस्सेत पमोहन ।। एत हि तुम्हे पटिपन्ना दुक्खस्सन्त करिस्सव । बक्खातो वे मया मग्मो अन्नाय सम्बसन्यन ॥ धम्मपद २७४ २७५ । ४ तुम्हेहि किन्च भातप्प बसातारो तथागता । पटिपन्ना पमोक्सन्ति शापिनो मारवन्धमा ।। वही २७६.

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