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१२ बोर तथा जनवम जिस पदाथ का कथन होता है वह अनेकान्तात्मक है । अनेका तात्मक अर्थ का कथन ही बनेकान्तवाद है । अत अव्यय स्यात अनेकात का द्योतक है। इसलिए स्यावाद को अनेकान्तवाद कहा गया है। देवेद्र मनि शास्त्री आदि जैन विद्वानो के अनुसार वास्तविक सत्य की खोज करन म अनकान्तवाद सहायक होता है। अनेकान्त दष्टि से प्रत्येक वस्तु नित्य एव अनित्य दोनों है । तत्त्वाथसूत्र के अनुसार प्रत्येक सत् पदाथ उत्पाद व्यय एव ध्रौव्यात्मक है। स्यावाद के अनुसार सत कभी नाश और असत की कभी उत्पत्ति नही होती। सूत्रकृताग के अनुसार वस्तुतत्व को जीव एव शरीर के रूप म माना गया है। प्रत्येक वस्तु अनन्त धर्मात्मक ह । उन अनन्त धर्मों की यथाक्रम सगति बैठाने के लिए विधि एव निषध आदि की भावना से सात प्रकार की भावनाओं का विचार किया गया है। इसे ही ससभगीनय कहत हैं। ये सात प्रकार के हैस्यात अस्ति स्यात नास्ति स्यात अस्ति नास्ति स्यात अवक्तव्य स्यात अस्ति भवक्तव्य स्यात् नास्ति-अवक्तव्य स्यात् अस्ति-नास्ति च अवक्तव्य । यहाँ जैनो के अनुसार इन सात प्रकार की अवस्थामो म द्रव्य क्षत्र काल तथा भाव आदि चार स्वरूपो को लेकर विभिन्न अवस्थाओ को सम्भावना की गयी है जिसके द्वारा वस्तु तत्व की सही जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
___जनो न विश्व के प्राकृतिक तथा अप्राकृतिक स्वरूपो का विचार कर सात प्रकार के मल तत्वो का पता लगाया । ये तत्व जीव अजीव आस्रव बघ सवर निजरा और मोक्ष है पुण्य पाप को भी इनम जोडकर उत्तराध्ययनसूत्र म इनकी सख्या ९ बतलायी गयी है। भगवान महावीर ने तत्व-जान को शिक्षा म बताया है कि जीव और अजीव अर्थात चेतन और जड़ ये दो मल तत्त्व है जो परस्पर सम्बद्ध है। चेतन की मन वचन काया से सम्बधित क्रियाओ द्वारा इस जड एव चेतन
१ मलिषण स्यावाद मजरी पू ६। २ शास्त्री देवेन्द्रमनि धर्म और दशन प १४ । ३ तत्त्वाथ सूत्र ५। ४ भारतीय दशन की रूपरेखा पृ १६४-१६६ । ५ सूत्रकृताग १।१।१७। ६ स्यादाद मजरी २३ । ७ मिश्र लमेश भारतीय दशन प १३१ । ८ तत्वाथसूत्र १।४। १ उत्तराध्ययनसूत्र २८।१।।