Book Title: Bauddh tatha Jain Dharm
Author(s): Mahendranath Sinh
Publisher: Vishwavidyalaya Prakashan Varanasi

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Page 110
________________ बोड स्वाभापार १९ इस प्रकार के साधनों के माध्यम से जीविकोपार्जन करना हीन माना गया है। इनसे विरत होकर ऐसे कार्यों द्वारा जीविका उपाजन करना जिससे किसीकी हानि न हो सम्यक माणीविका है । जीविकोपाजन के साधनो में सवत्र निर्दोष ढग को ही श्रेष्ठ बताया गया है। धम्मपद से प्रकट है कि जिस प्रकार भ्रमर विभिन्न पुष्पों पर जाकर उनसे रस लेकर अपनी जीविका चलाता है उसी प्रकार भिक्ष गांवों में विचरण करते हुए बिना किसी पर भारस्वरूप बने जीविकोपाजन करे । ६ सम्यक व्यायाम ठीक प्रयत्न शोधन उद्योग । भिक्ष अनुत्पन्न पापों को न उत्पन्न होने देने के लिये इच्छा उत्पन करता है उनसे प्रयत्नपूर्वक अपने चित्त को रोकता है। इसी प्रकार वह उत्पन पापों के नाश और अनुत्पन्न सुकर्मों के उत्पाद के लिए इच्छा उत्पन्न करता है। उत्पन्न कुशल धर्मों की स्थिति अ नाश बद्धि विपुलता एव पूर्णता के लिए इच्छा उत्पन्न करता है। यही सम्यक व्यायाम है । सत्कर्मों के करने की भावना करने के लिए प्रयत्न करत रहना चाहिए । इन्द्रियो पर सयम बरी भावनाओ को रोकने और अच्छी भावनाओ के उत्पाद के प्रयत्न और उत्पन्न अच्छी भावनाओं को कायम रखने के प्रयल य सम्यक व्यायाम है । बिना प्रयत्न किये चचल चित्त से शोभन भावनाय दूर भागती जाती है और बरी भावनाय घर जमाया करती है। अत यह उद्योग आवश्यक है। ७ सम्यक स्मृति स्मृति का अर्थ है जागरूकता । इस अग का विस्तृत वर्णन दीघनिकाय के महा सतिपटठानसुत्त में प्राप्त है। स्मृति प्रस्थान चार है-(१) कायानुपश्यना (२) वेदनानुपश्यना ( ३ ) चित्तानुपश्यना और ( ४ ) धर्मानुपश्यना । इन चारों स्मृति प्रस्थानो की भावना करने को सम्यक स्मृति कहते हैं । ___ स्मृति का अभ्यासी कायानुपश्यना का अभ्यास करते हुए इस शरीर को विश्लेषण द्वारा समझने का यत्न करता है । वह इसे जानन-पहचानने का यत्न करता १ यथापि भमरो पुफ्फ वण्णगन्ध आहेठय । फलेति रसमादाय एव गाने मुनी परे । धम्मपद गापा-सख्या ४९ तुलनीय दशवकालिक गापा-सख्या २। २ दीघनिकाय द्वितीय भाग १ २३३ २३४ । ३ वही २२३१३ १ २३४ मजिसमनिकाय ११५६ पृ ७७ ।

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