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६४ : बौद्ध तथा जैनधर्म
४ देव जोब
पुण्य कर्मों का फल भोगने के लिए जीव देव पर्याय को प्राप्त करता है । भौमय व्यन्तर ज्योतिषी और वैमानिक ये चार प्रकार के देव कहे जाते हैं । इनके अन्य भवान्तर प्रमुख २५ भेद हैं । परन्तु इकतीसव अध्ययन में २४ प्रकार के देवों की संख्या का उल्लेख है ।
१ भवनपति या भवनवासी देव
भवनो में उत्पन्न होनवाले देवो को भवनपति या भवनवासी कहते है । इनकी दस जातियाँ है ।
२ व्यन्तरदेव
जिनके उत्कष और अपकषमय रूप विशेष हैं तथा गिरि कन्दरा और वृक्ष के विवरादि में जिनका निवास है उनको व्यन्तरदेव कहत हैं। उत्तराध्ययनसूत्र में इनकी संख्या आठ बतायी गयी है ।
१ बोरस्स पस्स धीस्त सव्वषम्भाणवत्तिणो । चिच्चा अषम्म धम्मिटठे देवेसु उववज्जई ||
२ देवा चउब्विहा वृत्ता ते मे कित्तयओ सुण । भोमिज्ज- वाणम तर - जोइस वेमाणिया तहा ॥
वही ७।२९ तथा २१२६ ।
वही ३६ २ ४ तथा ३४१५१ ।
३ दसहा उभवणवासी अटव्हा वण चारिणो । पचविहा जोइसिया दुबिहा वेमाणिया तहा ||
४ स्वाहिए सुरेस अ ।
५ असुरा नागसु वण्णा बिज्ज अग्गी य आहिया । दीवो दहि दिसा वाया चणिया भवणवासिणो ॥
६ पिसायभया जक्खा य रक्खसा किन्नराकिपुरिसा । महोरगा य reer rcoविहा वाणमसरा ॥
वही ३६।२५।
वही ३१।१६ ।
वही ३६।२५ ।
वही ३६।२ ६ ।