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उसका जन्म और मरभ के द्वारा ससार म भटकना समाप्त हो जाता है । मोड-से भेव के साथ इस कम-सिद्धान्त को दोनों ही परम्पराएं स्वीकार करती है ।
किन्तु इन समानताओं के होते हुए भी दोनों धर्मों में जो मौलिक अन्दर है जिनके कारण ये दोनों धर्म मित्र हैं। इनम सबसे प्रमुख बात पदार्थविषयक मान्यता है । बौद्ध-दशन के अनुसार पदार्थ उत्पाद एव व्यय से मुक्त है जब कि जैन दर्शन में पदार्थ उत्पाद व्यय एव धौष्य से युक्त है । फलत वह नित्यानित्यात्मक सामान्य विशेषात्मक एव भेदाभेदात्मक है । बौद्ध-दशन में आत्मा को नित्य एवं स्वतन्त्र द्रव्य के रूप में न मानकर पथस्कन्धात्मक माना गया है जब कि जैन-दर्शन में आत्मा को परिणामी नित्य स्वतन्त्र द्रव्य के रूप में स्वीकार किया गया है। जैनधम जात्मवादी और बौद्धधर्म मनात्मबादी है ।
बौद्ध और जैनधम का साम्य और वैषम्य स्पष्ट है । अत यह एक विचारणीय विषय है कि इन दो विचारधाराओं में उक्त साम्य एव वैषम्य किस सीमा तक है और उसका आधार क्या है ? उक्त प्रश्नो का उत्तर पाने के लिए धम्मपद एव उत्तराध्ययनसूत्र का तुलनात्मक अध्ययन अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । इसका कारण यह है कि जहाँ एक ओर धम्मपद में जो खुद्दकनिकाय का एक स्वतन्त्र ग्रन्थ है बौद्धधर्म के समस्त तत्त्व संक्षेप म वर्णित हैं तो दूसरी ओर उत्तराध्ययन में जैन-दशन के सभी मूल सिद्धान्तों का कथन ह। बुद्ध ने धम्मपद में बौद्धधम के तत्त्वो का वजन कर तथा महावीर ने उत्तराध्ययन म सभी जैन सिद्धान्तो का वर्णन कर गागर में सागर भरने की कहावत चरितार्थ की है । अत इन दोनों ग्रन्थों का तुलनात्मक अध्ययन जो कि आज तक नही हुआ है बौद्ध एव जन दशन के सम्बन्धो को अधिक अच्छी तरह से समझने में सहायक हो सकता है ।
बौद्ध साहित्य मे धम्मपद का स्थान
धम्मपद पालि बौद्ध साहित्य का एक अत्यन्त लोकप्रिय ग्रन्थ है । ब्राह्मण या श्रौतस्मार्त-परम्परा में जो महत्त्व श्रीमद्भगवद्गीता को प्राप्त है वही स्थान बौद्ध परम्परा में धम्मपद को है । दोनों में मौलिक अन्तर भी है। गीता का एक ही कथानक है और श्रोता भी एक ही है लेकिन धम्मपद के विभिन्न कथानक और विभिन्न धोता है । गीता का उपदेश एक निश्चित समय में समाप्त किया गया था लेकिन धम्मपद में तथागत के पैंतालीस वर्षों के उपदेश सगृहीत हैं। भगवान् बुद्ध ने बुद्धत्व प्राप्ति से लेकर परिनिर्वाणपयन्त समय-समय पर जो उपदेश दिये उनका महत्वपूर्ण अंश धम्मपद में सकलित है । बौद्धधम-दशन के प्रमुख सिद्धान्त इसमें सक्षेप में समाहित हैं ।
धम्मपद शीर्षक की व्याख्या भिन्न-भिन्न विद्वानों द्वारा विभिन्न प्रकार से की गयी है । यह एक अनेकार्थक शब्द है जिसे स्वत बौद्धों में भी स्वीकार किया है ।