Book Title: Bauddh tatha Jain Dharm
Author(s): Mahendranath Sinh
Publisher: Vishwavidyalaya Prakashan Varanasi

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Page 119
________________ १५ उल्टी हवा नहीं जाती किन्तु सज्जनों की सुगन्ध उल्टी हवा भी जाती है सत्पुष्य सभी दिशाओं में सुगन्ध होता है । चन्दन या तार कमल या जहाँ इन सभी सुगन्धी से झील की सुगन्ध उत्तम है । तगर और चन्दन की जो गन्ध फैलती है यह अल्पमात्र है । किन्तु जो शीलवानों की गन्ध है वह देवताओं तक में फैलती है। जो ये शीलवान् निरालस हो विहरनेवाले मथार्थ ज्ञान द्वारा मुक्त हो गये है उनके मार्ग को मार नहीं पाता । शील के भौतिक लाभ चाहे जो भी हों पर उनका मुख्य लाभ वाध्यात्मिक है । शीलवान् के मन में जो आत्मस्थिरता या आत्मशक्ति होती है वह दु-शील को सुलभ नहीं । शील सम्पूर्ण मानसिक ताप को शान्त कर देता है । बशान्त पुरुष सदा यही सोचा करते हैं कि उसने मुझे गाली दो मुझे मारा मुझे हराया मुझे लट लिया । इस तरह सोचतेसोचते लोग अपने हृदय में वैररूपी भाग जलाते रहते हैं । वैर का मूल कारण दुशीलता ही है । वराग्नि का शमन शील से ही हो सकता है । जो व्यक्ति शीलों का पालन नही करता दुराचारी हो अनेक प्रकार के पापकर्मों में ही लगा रहता है वह मानवता से च्युत समझा जाता है। उसकी दुर्गति होती है और वह जब तक सदाचारी नहीं बनता है तब तक निर्वाण-सुख को नहीं प्राप्त कर सकता । उसका जीवन निस्सार और हेय माना जाता है । भगवान् बुद्ध ने कहा है कि असयमी और दुराचारी हो राष्ट्र का अन्न खाने से आग की लपट के समान तप्त लोहे का गोला खा लेना उत्तम है । इस प्रकार सदाचार के महत्व को जानते हुए सदाचारी बनने का प्रयत्न करना चाहिए । १ न पुप्फगन्धो पटियातमेति न चन्दन तगरससम्य गन्धो पटियातमति माल्लकावा सन्धा दिसा सप्पुरिसो पवाति ॥ धम्मपद ६५४ चन्दन तगर वापि उप्पल arraftest | एतेस गन्धजातान सोलगन्धो अनुत्तरो || अप्पमतो अय गन्धो या च यो व सोलवत गन्धो-तगरचन्दनी । वाति देवेषु उत्तमो ॥ तेस सम्पन्न सीकान अप्पमाद बिहारिन । सम्मदन्ना विमुतान मारो मन्य न विन्दति ॥ २ मक्कोछि म अवधि में अजिनिमं महासिमे येतं उपनयहम्ति बेर ते न सम्मति H ३ सेम्यों योगुलो मुक्तो ततो अग्नितिखूपमो । बचे भुवेय्य दुस्सीको रट्ठपिण्डं असमजतो || वही ५५ । वही ५६ । वही ५७ । ३। नही १०८।

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