________________
सवासो गाथा स्तवन.
. ( ११ )
1
व्याख्या - शिष्य पुढे सुत्र, जो परभावनो अकर्ता प्राणी कबो तो अम्नुक दाता, अमुक हर्ता, इत्यादिक व्यवहार केम घटे ? तथा दान हरणादिकनुं फल पण केम घटे ? त्यां सद्गुरु वाणी वदे छे. जे शुद्ध निश्चय नयनो अर्थ अमे कह्यो, ते मनमांहे घरो. त्यां केवल व्यवहार वाध थातां दोष नथी. दान हरणादिक फल तो आत्मनिष्टितन ठेरशे पर तो . निमित्त मात्र छे. तेज विवरी देखाडे छे. ॥ ३७ ॥
धर्म नवि दिए न वा सुख दिए, पर जंतुने देतो ॥ आप सत्ता रहे आपमां, एम हृदयमां चेतो ॥ शु० ॥
३८ ॥
व्याख्या - पर जंतुने देतो थको प्राणी, आपणो धर्म वाके० तथा आपणुं सुख न दे शके. जे माटे आप सत्ता के० आपणो भाव आपमांज रहे, ते परने केम अपाय ? एम हृदय मांहे घेतो. व्यवहार दृष्टि जीव समजो || ३८ || हवे कोइ कहेशे जे आत्मभावनो परने केम दाता इर्ता न होय अने पुद्गलना भावनोज दाता हर्ता होय? ते उपर कड़े छे.
जोग वशे जे पुद्गल ग्रह्मा, नवि जीवनां तेह ॥
तेहथी जीव छे जूजूओ, वली जूजूओ देह || शु० ॥ ३९ ॥
व्याख्या - योग वशे के मन वचन काय वले जे पुद्गल ग्रह्या छे, ते पुद्गल जीवनाज नथी. तेह पुद्गलथी जीव जूजूओ छे, वली जीवथी देह पण जूजूओ छे. कोने कोण ग्रहे ? ॥३९॥
न पानादि पुद्गल प्रते, न दिए छति विना पोते ।
दान हरणादि परजंतुने, एम नवि घटे जोते ॥ शु० ॥ ४० ॥
व्याख्या - एम भक्तपानादिक पुद्गल मत्ये पोते छति विना परने पर न दिए. त्रिकाले जीवना असंसर्गि पुद्गल छे, ते केम देवाए ? एम सूक्ष्म रीते जोतां परने दान हरणादिक केम घटे ? नज घटे ॥ ४० ॥ तो कर्मवैध केम थाय छे ? ते कहे छे.'
दान हरणादिक अवसरे, शुभ अशुभ संकल्पे ।
दिए हरे तुं निज रूपने, मुखे अन्यथा जल्पे ॥ शु० ॥ ४९ ॥
व्याख्या - परने दान देवानो तथा परधन हरणनो अध्यवसाय जे वारे करे छे, ते अवसरे दानरूप शुभ संकल्पे निज हरणरूप अशुभ संकल्पे निज रूपने आत्म धर्मने आत्माने दीए छे, तथा हरे छे, अने मुखे अन्यथा जल्पे छे जे. हुं प्ररने देई हुँ, परतुं चोरुं लुं, परोपकार कर्ता छु. ए प्रमाणे मन निमित्त कर्म तुं वांधे के ॥ ४० ॥
अन्यथा वचन अभिमानथी फरी कर्म तुं बांधे ।
ज्ञायक भाव जे एकलो, ग्रहे ते सुख साधे ॥ शु० ॥ ४२ ॥