Book Title: 125 150 350 Gathaona Stavano
Author(s): Danvijay
Publisher: Khambat Amarchand Premchand Jainshala
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॥ ढाल सातमी॥ ॥राजगीतानी देशी अथवा मुरति महिनानी ॥ कोइ कहे गुरु गच्छ गीतारथ सारथ शुद्ध, मानु पण नवि दिसे जोतां कोई विबुद्ध । निपुण सहाय विना कह्यो सूत्रं एक विहार,
तेहथी एकाकी रहेतां नहीं दोष लगार ॥ १ ॥ अर्थ-पूर्व ढालमां गीतार्थ वर्णव्या हवे एवा गीतार्थ गुरु पासे बस ते आ ढालमां कहे छे. कोइक आगमना रहस्यने अजाणतो थको आगमनुं शरण करी बोले छे जे गुरु के० गुरु आदिक गच्छ के०सुविहितनो समुदाय वली गीतार्थनो सारथ के समुदाय "संघसार्थों तु देहिनां" इति सामान्य कांड वचनात, एवा शुद्ध के० पचित्र ते गुरु,गच्छ,गीतार्थ सर्वने मानु के० अंगीकार करुं हुं पण ते जोतां थकां कोई विवुद्ध के० कोइ डाया पंडित नवि दिसे के० देखाता नथी अमारी नजरमां कोइ आवता नथी निपुण सहाय के० डायानी सखाइ न मले तो ते विना सूत्रे के० उत्तराध्ययनसूत्रने विषे कयु छ जे एक विहार के. एकला विहार करीये. उक्तंच काव्यम्-"नवा लमिज निउणं सहाय, गुणाहियं वा गुणो समंवा । इकोवि पावाइविबज्जयतो, विहरिज कामेसु असज्जमाणो ॥१॥" एम ते सूत्रमा एकाकी विहारनी आज्ञा छे माटे एकाकी रहेतां थकां लगार दोष नयी ॥१॥
अणदेखता आपमां ते सवि गुणनो योग, किम जाणे परमां व्रत गुणनो मूल वियोग । छेद दोष ताई नवी कह्या प्रवचने मुनि दुःशील,
दोष लवें पण थिर परिणामी बकुस कुशील ॥२॥ अर्थ-हवे तेने उचर आपेछे जे एम कहेछे ते पाणी आपमां के० पोवामां सर्व गुणनो योग के संयोगने अणदेखतोथको एटले ए भाव जे पोते सर्वगुणी तो थयो नथी तो पोते दोपर्वत थको केवी रीते परमां के० चीजामां व्रत गुणनो मूल वियोग के० व्रतनो गुण मलयी नथी ए शीरीतें जाण्यु केमके गुरु आदिका तो कांइक गुण हशेज तो दोषनो लेश देखीने गुरुने मूकाय नहीं. गाथा-"इयभावियपरमत्या, मज्झत्था नियगुरु नमुंचंति । सन्चगुणसंपओगे, अप्पाणमिवि अपिच्छंता ॥१॥” इति धर्मरत्न प्रकरणे तथा छेद दोषतांड के दश प्रकारना प्रायश्चित्तमा सातमो छेद दोष लागे तिहां लगें प्रवचने के. सिद्धांतने विष मुनिने दुशील के०कुशीलिया हीणा नयी कह्या. यतः-"छेयस्स, जाव दाणं, वाव एगपि नो अइकमइ । एग अइकमतो, अइक्कमे पंच मूलेणं ॥१॥” इति वचनाद, अने थोडो दोष देखीने

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