Book Title: 125 150 350 Gathaona Stavano
Author(s): Danvijay
Publisher: Khambat Amarchand Premchand Jainshala

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Page 196
________________ (३०) अदक्खू अणभिभूए पहू निरालंवणयाएजे महं अवहिमणे पवारण पवायं जाणिजा। सहसंमइयाए परवागरणेणं अनेसि वा अंतिए मुच्चा निहेस नाइवहेज्जा, मेहावी सुपडिहिय सन्चतो सवआए सममेव समभिण्णाय ।" इत्यादिक एहनो अर्थ टीकामां तो वहु छे पण अर्हि शब्दार्थ मात्र लिखीयें छैयें अणाणाए के प्रभुआज्ञारहित एगे के० केटलाक सोवठाणे के०धर्ममा सदा उद्यमवंत थया तथा केटलाक आणाए के० आज्ञायें निरुवहाणे के० सद अनुष्ठानना उद्यमरहित एवं के० ए बे कुमार्गने सद्मार्गना उद्यमनुं आलस जाणवू हवे फरि गुरु शिष्यने कहे छे-सुजने ए वे माहे जो एवं कुसलस्स दंसणं के० ए तीर्थकरनो दर्शन अभिपाय छे तदिहिए के० विनित शिष्ये ते आचार्यनी दृष्टीयें वर्तवु तम्मुत्तिए के० ते आचार्यनी मुक्तिये वर्तवू तप्पुरकारे के० ते आचार्यनी आज्ञा आगल करीने वर्ते तस्सन्नि के० तेओनी संज्ञा जाणे चित्तनो अभिप्राय जाणे तनिवेसणे के० सदा गुरुकुलवासे वसे एडवो शिष्य केवा गुणने पामे ते कहे छे अभिभूय के० परिसह उपसर्गने जीतीने अदक्खु के० घाति कर्मने उच्छेदे हे शिष्य वली अणमिभूए के० परिसहोपसर्गने अण जित्यो थको पहू के समर्थ होय निरालंवणयाए के० माता पिता सज्जनादिकना आलंवन रहितपणे विचरवाने कोण समय होय ते करे -जे के० जे कोइ पुरुष महं के० माहरा अभिप्राय थकी अवहिमणे के० मन वाहेर नथी निकल्यु जेहनु एटले सर्वज्ञ उपदेशे वर्ते छे इतिभाव ते सर्वज्ञ उपदेश केम जाणीये ते उपदेश कहेछे-पवारणं पवायं जाणिज्जा ए अर्थ 'लहे प्रवाद भवादे' एम कडं तिहां करयो छे ते जाणवू. हवे पूर्वोक्त जे प्रवाद ते त्रण प्रकारे जाणे ते कडे छे सहसंमुइयाए के० पोतानी मति अवध्यादिकमते अथवा परवागरणेणं के सिद्धांते करीने वा के० अथवा अधेसि के० अन्य आचार्यादिक तेहने वा अंतिए सुच्चा के समी सांमलोने यथार्थ जाणीने निसं नाइवहेज्जा के तीर्थकरना उपदेशने ओलंगे नहीं केमके जे मेहावी के पंडित मुपडिलेहिय के० भलेपकारें जोईने सव्वतो सवाए के.सर्वप्रकारें द्रव्यक्षेत्रकालमा सर्वपणे स्वदर्शन परदर्शनमतें सममेव के० सम्यक् रीते समभिण्णाय के० जाणीने निराकरण करे इत्यादिक बहु अधिकार छे ते माटे बहुगुण मुगुरुमसादे के० गुरु आदिकना पसाययी घणागुण थाय "पुज्जा जस्स पसियंति, संबुद्धा पुन्वसंथुआ । पसमा लाभइस्संति, विउलं अहियं मुयं ॥ १॥" इत्युत्तराध्ययने प्रथमाध्ययने इहां सूत्र आलावो . विषमहतो माटे अर्थ को छे ॥ ८॥ विनय वधे गुरु पासे वदतां, जे जिनशासन मूलोरं । दर्शन निर्मल उचित प्रवृत्ति, शुभरागें अनुकूलोरे |श्रीजिन०९॥ अर्थ-वली गुरु पासे वसतां विनय वधे अने जे विनय ते जिनशासनचं मूल छ । यता-"एवं धम्मस्स विणो मूलं परमो य से मुख्को" इति दसवैकालिक नवमाध्ययनना वीजा उद्देशकें कह्यो तथा "विनयफलं शुश्रूषा, गुरुशुश्रूषाफलं श्रुतज्ञानं । ज्ञानस्य फलं रितिः, विरतिफलं चाश्रवनिरोषः ॥१॥ आश्रवरोधाद्भवसततिक्षयः संततिक्षयान्मोतः।

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