Book Title: 125 150 350 Gathaona Stavano
Author(s): Danvijay
Publisher: Khambat Amarchand Premchand Jainshala

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Page 284
________________ (११) ने निश्चयनयनी वाती करवी ते भजे के करे अथवा परसमयस्थिति भजे के अन्यदर्शननी स्थिति भजे एटले एकांत निश्चय नयवादी दिगंवरादिक ते परदर्शनी कहिये ते वारे पण परदर्शनी स्थिचि भजी. इति भावः ॥१५॥ तेह कारण थकी सर्व नय नवि कह्या, कालिकश्रुत मांहें तीन प्रायें लह्या। देखी आवश्यकें शुद्ध नय धुरें भणी, जाणिये उलटी रीतिबोटिकतणी ॥ १६ ॥ अर्थ-ते कारणथकी निश्चय परिणामी ते एकली परिणामनी वातो करीने मार्ग उपाडी नांखशे एवुजाणीने १ नैगम २ संग्रह ३ व्यवहार ४ रूजुसूत्र ५ शब्द ६ समभिरूढ ७ एवंभूत ए सर्व नय नथी कह्या, केम नथी कह्या ते कहे छे कालिकश्रुत माहे के० आचारांगादिक कालिकश्रुतने विषे तीन पायें लह्या के० बहुलतायें १ नैगम २ संग्रह ३ व्यवहार ए त्रण नय लख्या छे. ए वात ग्रंथकार शिष्यने कहे छे जे देखी आवश्यके के आवश्यक नियुक्तिमा देखजो एटले कालिकश्रुतमां माये त्रण नय कया छे एम आवश्यक नियुक्तिमां कडं छे. यता-" एएहि दिहिवाए, परुवणा मुत्तअत्थकहणाए । इह पुण अणभुवगमो, अहिगारो तीहिं ओसन्न ॥१॥पायं संववहारो, ववहारं तेहिं विहिं उजलोए, नेणं परिकम्मणत्थं कालियमुने वदहिगारो ॥२॥" इत्यावश्यके. एरीततो श्वेतांवर पक्षे छे. जे पूर्व व्यवहार समजावीने पछे निश्चयनी वात समजावे इति. तथा हवे दिगंवरनी प्रक्रिया दूखवे छे जे शुद्ध नय धूरें के निश्चय नय धूरे छे ते माटे वोटिक के दिगंवरनी रीति ते उलटी के विपरीत जाणीयें जे माटे पहेलांथी निश्चय नय समजावे एटले व्यवहारमा दृष्टि ठरेज नहीं माटे विपरीत कहि. इति भावः ॥ १६ ॥ शुद्ध व्यवहार छे गच्छ किरिया थिति, दुप्पसह जाव तीरथ कथु छे नीति ॥ तेह संविज्ञ गीतार्थथी संभवे, अवर एरंड सम कोण जग लेखवे ।। १७ ॥ अर्थ-ते माटे व्यवहार ते प्रधान छे ते शुद्ध व्यवहार तो सुविहित गच्छ जे साधुसमुदाय तेनी क्रियानी जे स्थिति तेमा छे एटले शुद्धव्यवहार ते सुविहित गच्छमां होय दुम्मसहनामा आचार्य जे पांचमा झाराने छेडे थशे जाव के तिहां लगें नीति के निरंतर तीर्थ कयुं छे. यतः-" इय सव्वोदययुगपवरसूरिणो चरणसंजुए वंदे । चउरुत्तरदुसहस्स, दुप्पसहते मुहम्माइ ॥१॥” इति दुसम संघ स्तोत्रे तथा "वासाण वीससहसा, नवसय ति मास पंच दिण पहरा ।इका घडिया दो पल, अक्सरइगुआल निणधम्मो॥१॥” इति दीवाली कल्पे ॥ ते तीर्थ तो गीतारथ संविज्ञ होय तेथीज संभवे एटले "नाणकिरियाहि मुक्खो" ॥इति भाज्य वचनात्. एटळे ज्ञानक्रियाथी मोक्ष ते ज्ञानक्रिया तो गुण छे अने जे गुण छे ते गुणीथी

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