Book Title: 125 150 350 Gathaona Stavano
Author(s): Danvijay
Publisher: Khambat Amarchand Premchand Jainshala

View full book text
Previous | Next

Page 221
________________ अर्थ-भावमोचक परिणाम के० बौद्धादिकना परिणाम सरिखो छे एटले बौद्धादिक एम माने छे के जे दुःखी होय तेने मारीयें तो दोष न लागे कारणके तेने मारता नयी पण उलटो दुःखथी मूकावियें छैयें ए रीते मार्छ कृत्य करीने तेने रुडं माने छे ते सरिखो तेहनो के० ते ढुंढकादिक अज्ञानीनो शुभ उद्देश के० शुद्ध प्रवर्तन जाणवो एटले यद्यपि तेओनी अहिंसा द्रव्यथी छे पण परिणामे हिसाज जाणवी तिहां हेतु कहे छे जे आणारहित पणे जाणी जे एटले आज्ञारहित माटे. यत:-" आणाइ तवो आणाइ, संयमो तह य दाण माणाए । आणारहिओ धम्मो, पलालपुल्लन्च पडिहाइ ॥१॥” इति वचनात् ए अर्थ उपदेशपदग्रंथमा जोइने जाणी जे के० जाणीयें. यतः-"ज अनाणी मूढो, जं च अगीयत्थ. निस्सिओ विहरे । सो सुगयकम्मसरिसो, पावपवघे विलिप्पंति ॥ १॥" ॥ ५॥ . एक वचन झालीने छांडे, बीजा लौकिक नोति । सकल वचन निज ठामे जोडे, ए लोकोत्तर नीति ॥ मन०६॥ अर्थ-ए गाथानो अन्वय करी अर्थ करे छे. जे एक लौकिक वचन झालीने वीजा सर्व नीतिनां वचन छांडे छे इत्यन्वयः ते लौकिक वचन ए जे कोइने न हणवो ते उपर आगमना पाठ देखाडे छे जे “सव्वे पाणा सव्वे भूमा सव्वे जीवा सव्वे सत्तान हंतव्वा" इत्याटिक •आगमनुं एहवु वचन छे अने यद्यपि लोक पण पौढमार्गे एम कहे छे जे कोइने न मारवो ते माटे ए वचनने लौकिकवचन कहीये ते लौकिकवचन पकडीने वीजां सर्वे नीतिवचन के० लौकिकथी वीजा जे लोकोचरवचन दान देवपूजा साहमीवत्सल प्रमुख ते नीतिवचन कहीयें ते सर्व छांडि देछे पण ते सर्व खोई करे छे केमके जे सकल वचन निजठाम जोडे के० समस्त सिद्धांतना वचन जे छ तेने ठेकाणे जोडे ते.लोकोचरनीति जाणवी सकल वचन ए पद बीजीवार जोड, एटले ए भाव जे गुणठाणा माफक सहु सहुनी हद प्रमाणे समस्त सिद्धांतना वचन जोडे जे आ वचन ते मुनिराजनेज आश्री छे अने आ वचन ते गृहस्थने आश्री छे ते अपेक्षाओ जैनशासनमा घणी छे ते पोतपोतातानी अपेक्षा प्रमाणे जोडे ए लोकोत्तरनीति ते जिनशासननी नीति छे ॥६॥ जिनशासनं छे एक क्रियामां, अन्य क्रियामां संबंध | जेम भाषी जे त्रिविध अहिंसा, हेतु खरूप अनुबंध ॥मन०७॥ अर्थ-तथा जिनशासन ते एक क्रियामा अन्य क्रिया संबंध छे जे माटे जे हिसा तेज अहिंसा अने,जे अहिंसा तेज हिंसा अने जे तपस्या तेज जो निस्पृहीपणुं नथी वो अतपस्या छे भोगी छे अने भोगी छतां निस्पृहिपणु छे. तो, तेज तपस्वी छे इत्यादिक जिनशासनमा एकांत नयी स्याद्वाद छे. यवा-" अविषायाऽपि हि हिंसां, हिंसाफलभाजनं भवत्येकः । कृखाप्यपरो हिंसां, हिंसाफलभाजनं न स्यात् ॥१॥" इति अहिंसाष्टक वचनात् . ते वली हिंसा तथा अहिंसा अनेक मेदें आंगली गाथामां. देखाडे छे जेम भाषी जे के० जिनशासन

Loading...

Page Navigation
1 ... 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295