Book Title: 125 150 350 Gathaona Stavano
Author(s): Danvijay
Publisher: Khambat Amarchand Premchand Jainshala
View full book text
________________
अर्थ-हवे तेज सूत्रना विरोधीपणाने देखाडे छे जे देवानंदानी कुखथी लेइने त्रिसलादेवीने कुखे संहरता के० संहरचा ते संहरतां वीरखामी जाण्यु नहीं एम श्रीकल्पसूत्रमा कबु छे. यथा-"साहरिजिस्सामित्ति जाणइ, साहरिजमाणे न जाणइ, साहरिएमिचि जाणह" इति पागत्. तथा वीरखामीने हरणगमेषीय संहरया ते अवसरे प्रथम अंग जे श्रीआचारांग तेमां ज्ञाननो जल्प के० शब्द छे एटले ए भाव जे संहरता थकां प्रभुयें जाण्यु एम कडं छे तथा च तत्सूत्र-"साहरिजस्सामित्ति जाणइ, साहरिएमित्ति जाणइ, साहरिज्जमाणेवि जाणइ । समणाउसो" इति पंचदशे भावनाध्ययने इति विरोधः ॥ २१ ॥
ऋषभकूट अडजोयणो, जंबूपन्नत्ति सार; जि०। बार वली पाठांतरें, मूल कहे विस्तार ॥ जि० तुझ० २२ ॥ अर्थ-वली ऋषभकूटर्नु आठ योजन मूल विस्तार छे एम जंबूद्वीप पनत्तिसूत्रमा कबु छे. यत:-"एत्थणं उसमकूडे नगकूडे पनते अजोयणाई उहूं उच्चत्तण दो जोयणाई उव्वेहेणं मूले अह जोयणाई विक्खमेणं मज्झे छ जोयणाई विक्खमेण उपरिचत्तारिजोयणाई विक्खमेणं" इत्यादिक जंबूद्वीप पन्नतिनो पाठ छे सार के प्रधान एहवी जंबूद्वीप पनति कहे छे गाथानो अर्थ अन्वय करी करिये एटले एक पाठ तो ए कयो वली एज जंबूद्वीप पन्नत्तिमां पागंतरे वीजो पाठ छे तेमां वार जोजन मूलें विस्तार कह्यो छे ते केम मले एकज सूत्रमा वे पाठ शा? सर्वज्ञना ज्ञानमां फेर नथीतो संदिग्ध वचन केम होय इतिभावः तथाच तत्पाठः "मूले वार जोयणाई विक्खंभेणं मज्ज्ञ अह जोयणाई विक्खंभेणं उपरि चत्वारि जोयणाई विक्खभेणं" इत्यादिक पाठ जोजो केवल सूत्र मेलवी आपजो ॥२२॥
सत्तावन सय मल्लिने, मन नाणी समवाय; जि० । आठ सया ज्ञाता कहे, ए तो अवर उपाय | जि. तुझ० २३ ॥ अर्थ-श्रीमल्लिनाथस्वामीने सत्तावनसो मनपर्यव ज्ञानी श्रीसमवायांगसूत्र मध्ये कया छे यत:-"मल्लिस्सण अरहओ सत्तावन मणपज्जवभाणी सया होत्था इति ।" श्रीज्ञातास्त्र मध्ये मल्लिनाथस्वामीनेज आठसो मनपर्यव ज्ञानी कह्या छे. यथा-"अहसया मणपज्जवनाणीण" एम श्रीसमवायांगसूत्र तथा ज्ञातासूत्र मल्युं नहीं ए विरोध ए तो अवरउपाय के० ए मेलववानो उपाय तो अन्यज छे ते तो गीतार्थज्ञानी जाणे ॥ २३ ॥
उत्तराध्ययने स्थिति कही, अंतरमुहूर्त जघन्य; जि० । वेदनीयनी बार ते, पन्नवणामा अन्य ॥ जि० तुझ० २४ ॥
अर्थ-तथा श्रीउत्तराध्ययनसूत्र मध्ये वेदनी कर्मनी स्थिति जघन्य अंतरमुहूर्त कही छे. यता"उदहिसरिनामाणं तीसई कोडाकोडीओ उक्कोसियाठिई होइ, अंतोमुहुच जहनिया ॥१॥

Page Navigation
1 ... 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295