Book Title: 125 150 350 Gathaona Stavano
Author(s): Danvijay
Publisher: Khambat Amarchand Premchand Jainshala

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Page 267
________________ (१०१:) लपटाय नहीं केमके पोते उत्तम आहारनो स्वाद जाणे हे तेथी तेनो राग तो उत्तम भोजनमांज होय छे जे उत्तम भोजन क्यारे मलगे ने मल तो वावरिये एवो अत्यंत राग होय. हवे अक्षरार्थ कहे के जे शुभ भोज्यमा दृढ राग छे तथा रसना जाण ते कम जे पूर्व पटरसा वावरवा छे ने स्वादनो जाण छ ने आपढामां के० दुकालादिक आपदामां विरुद्ध सेवतो एटले कुधान्य खातो थका पण नेनो गग मुधान्यमां होय ए दृष्टांने मुनिने पण चारित्रनी शुद्धि जाणवी एटले यद्यपि द्रव्य क्षेत्रादिक कारण पामीन विरुद्ध सेवे तोपण शुद्ध चारित्रना रसिओ के नेथी भावचारित्रने ओलंगे नहीं तेने भावथी चारित्रीयाज संगमाचार्यनी पेठे कहिये इत्यादिक बहु वक्तव्यता छ इति प्रथम भेटः ॥१०॥ जेम तृप्ति जग पामे नहीं. धनहीन लेतो रत्न | तप विनय यावच्च प्रमुख, तेम करतो हो मुनिवर वहु यत्न । सा०११ ।। अर्थ-हवं अतृप्तिनामा वीजु लक्षण कई छ म धनहीन के० दरिद्री होय तेने रत्ननो. ढगलो मल्यो नेवारें ने रन लेतां जगनमा वृप्ति के० गतोप पामेज नहीं तेम मुनि पण तप विनय वैयावच तथा प्रमुख गजान चारित्र तेहने विषे वणो यत्न करे यत्न करतो याकेज नहीं तृप्ति पामेज नहीं तमां नप करतांथकां तो निर्जरा थाय तथा सन दीपे ते प्रसिद्ध छ तया विनयनो अधिकार उत्तराध्ययनना पहेला अध्ययनथी जाणो अने वैयावच पण निर्जराने अर्थे अनेक प्रकारचें करे ने प्रश्न व्याकरणमृत्रधी जोजो तथा ज्ञान भणतां पण नवनत्रो वैराग उपजे. यतः-"जह जह मुयमवगाड, अइसयरसपसरसंजुयमउच्वं । तह तह पल्हाड मुणी, नवनवसंवेगसद्धाए ॥१॥" इत्यादि तथा चारित्रमा पण विशुद्ध विशुद्धतरसंयम स्थानक पामवाने सर्व अनुष्ठान करे उत्तरोत्तर संयम कंडक आगेहतां अप्रमादपणे केवलनानना लाभमणी थाय. यतः-"जोगे जोगे जिणसासणंमि, दुक्खक्खया पति । इकिमि अणंता, बटुंता केवली नाया ॥१॥" इत्यादि बीजो भेढ करो ॥ ११ ॥ गुरुनी अनुज्ञा लेइने, जाणतो पात्र कुपात्र । तेम देशनाशुद्धि दिए, जेम दीपे हो निज संयम गात्र|सा०॥१२॥ अर्थ-वे शुद्ध देशनानामा त्रीजुं लक्षण कहे छे गुरुनी अनुज्ञा के० आज्ञा लेइ-तेमज शुद्ध देशना आपे ते पण पात्र कुपात्रने जागनो यका जेम संयमरूप गात्र के शरीर ते? दीपे.के. गोमे निज के० पोनार्नु संयमरूप गात्र गोभे इत्यक्षरार्थ. एटले ए भाव जे सद-, गुरु पासेथी-सिद्धांतनो सार जाणी गीतार्थ यया होय तोपण गुरुनी आना लेइने-पण पो- . तानी मेले नहीं. पोते धन्ययको मध्यस्थपणे सद्भूत देशना आपे पण पात्र कुपात्राओलखीने देगना आपे ते पात्रना त्रण भेद छे. १ वाल २ मध्यम ३ बुद्ध. यत:-"वालः पश्यति। लिंग, मध्यमवुद्धिर्विचारयेत् वृत्तं । आगम तत्वं तु बुद्धः, परीक्षते सर्व यत्नेन ॥१॥n. इत्यादिक-तेनी देगनानो विवि वीजा पोडशकयकी जाणवी डहां विस्तार थाय माटे नयी:

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