Book Title: 125 150 350 Gathaona Stavano
Author(s): Danvijay
Publisher: Khambat Amarchand Premchand Jainshala

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Page 158
________________ (१०४) महामहोपाध्याय श्री यशोविजयजी कृत. ण दिशा तीया असंख्याता द्वीपसमुद्र ओलंघीए त्यां अरुणवर द्वीपनी वाहेरनी वेदिकाथी अरुणवर समुद्र बेतालीश हजार योजने तिगिच्छकूड नामे उत्पात पर्वत आवे. इत्यादिएमां असंख्याता द्वीपसमुद्र उल्लंघी अहींयां आवे ए केम ? ७४ श्री भगवती भूत्रना शतक पहेले उद्देशे वीजे सम्यकदृष्टि नारकीने महावेदना कही. अने भगवती सूत्रना शतक अढारमे उद्देशे पांचमे समकिती नारकोने अल्पवेदना कही. ए केम ? ७५ अंतगडे कृप्णने नेमिनाथे वारमो अमम नामे तीर्थकर थइश एम कछु, अने समवायांगने विषे चोवीश तीथकरना पूर्व भवनां चोवीश नाम कयां तेमां श्रेणिक १, सुपार्थ २, उदय ३, इत्यादिक गणनाए कृष्ण वासुदेव तेरमा कह्या. ते केम ? ७६ भगवतीना शतक आठमे उद्देशे नवमे पंचेंद्रिय तिथेच मनुष्यने विकुर्वणा काल अंतमुहूर्त्तनो कयो, अने जीवाभिगमे चार मुहूर्त कह्या ए केम ? ७७ भगवती सूत्रना शतक आठमे उद्देशे दशमे जघन्य ज्ञान दर्शन चारिअनी आराधना वालो त्रीने भवे मोक्षे जाय. सात आठ भव तो न उल्लंघे. तथा शतक वारमे उद्देशे नवमे नरदेवनो आंतरो जघन्यथी सागरोपम झाझेरो, उत्कृष्टो अपार्दपुहलपरावर्त होय, नरदेवपणुं तो सम्यगदृष्टि चारित्रिया नीपजावे. ए केम ? ७८ भगवती मूत्रना शतकपांचमे उद्देशे चोये ऊंघतो थको सात आठ कर्ग वांधे, उत्तराध्ययनना अध्ययन छब्बीशमे त्रीजे पहोरे रात्रे निद्रा करे. ए केम ? ७९ उत्तराध्ययनना ओगणीशमा अध्ययने का जे, मांस पोताना शरीरमांथी नरकमा खवराव्या. जीवाभिगममां असंघयणी कया तो संघयणविना मांस क्याथी ? ए केम? ८० पनवणामां बीजे पदे-" दिग्वेणं संघयणेणं " एम कयु अने जीवाभिगमे देवता असंघयणी कह्या. ए केम ? ८१ भगवती सूत्रना शतक पांचमे उद्देशे आठमे समूर्छिम मनुष्यने अहवालीश मुहूर्त अवस्थित काल कह्यो; अने पनवणामां चोवीश मुहूर्तनो उत्कृष्टो विरह कह्यो. एटले कोइ ऊपजे पण नहीं,अने कोइ चवे पण नहीं, अने भगवतीने लेखे चोवीश मुहूर्त लगे ऊपजे एटला चवे; एम अवस्थिति का ल कह्यो, ते अंतर्मुहुर्त आउपावालाने केम घटे ? ८२ भगवती तथा समवायांगे शक्रस्तपना पाठमां फेर केम? ८३ ठाणांगमां त्रीजे ठाणे उद्देशे पहेले पांच देवलोके त्रण वर्ण कहा. कृष्ण, नील, अने रक्त. जीवामिगमे लोहित, पीत अने शुक्ल ए केम ? ८४ पनवणामां प्रथम पदे पुद्गलना भेद पांचसें त्रीश थाय छे उत्तराध्ययनमा चारसें व्यासी भेद थाय छे. ए केम ! ८५ प्रज्ञापनामां वीशमे पदे किल्विपिसा जघन्ययी सौधर्म अने उत्कृष्ट लांतके जाय. भगवतीमा किल्विपिया जघन्यथी भवनपति, उत्कृष्टा लांतके जाय. ए केम ? ८६ कल्पसूत्रमा सहरतां वीर प्रभु न जाणे, अने आचारांगमां कवू संहरता जाणे, ए केम ? ८७ आचारांगे कडं जे प्रथम देवताने धर्म कही पछी मनुष्यने कहे, अने ठाणांगमा दश अच्छेरामां अभाविया परिसा. ते शृं? ८८:उववाइमां शुभ मन वचन काया उदेरवां कमां अने भगवतीमा एजतो-कंपतो हिंसा करे कमु ए केम ? ८२ उपासकदशांग मध्ये पाणद श्रावके भगवंतने कयु जे ई पारव्रत उचरीश; एम करीने सातवत पचरयां वली

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