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(४०) अंग्र-गवरोध के ग! हे वायनान जेयकी एटले सजे होर ने चुनीवरीना मननी नानारिणति के विचित्र मकानी परिणनियांना ज मेद के प्रकार ले लामिण के० जान्याविना पटले जगून मृनिगे हार गंजा नियानी विचित्र परिणति अजाणता
का क्षण एकनांराना याय पडले अंत:करणानां ऋोपी याय नया भग एकम नावायाय पटले वादग्ण ऋोड़ीम याय एग मूतेन एम यातां यकां अयत्रा राजा गगी याय परस्सरे छीडा कर नया वाता के पी नाय कायमयी थई जाय अने अंत के वडे विराधन उपाई के उपजा एलेने मूर्ख मांहमांहे वही करे. पण ममावि न उपजावे।
पश्चरसम पामर आदरता, मणिसम वुध जन छोडिरे। लह्याविण आगनथितिनो, ते पामें बहु खाडिरे । सा० १३ ॥ अर्य-भगिनयमान जे बुधजन के दिन लोग नहन झांडीने पत्यरसम के० पयरा मुमान जे पार यूजन नहनन आदरतां अंगीकार करते पानी ने पूर्व पास रहेना या आगम्नी जे मन अपगहादिल यित्ति के मर्यादा नीन्द के० प्रकार ने अगवा या ते आहग्नारा पुत्स गी तोड ण एटछ संयमल्प शरीर आखें न रहे जर डिन यार इतियार ॥१३॥
ज्ञानभक्ति भांजी अणलहता, ज्ञानतणो उपचारर । आरासारं मारग लोपे, चरण करणना साररे ॥ सा० १४ ॥ अर्थ-पत्राने मन्त्र द्वाय ते जाननी भन्जिन को मांज एटल संडित क नया अणलहना अपवारापना दानवों के जानना जे उपगर विनय नेने अणजाणता नेपानी आरामार के पांच आरा देने अनुसार मारण लोप पनामार्गन लाप हे पटले चुनने आदग्नांबानमनिन मांजवा ज्ञानना उपवार अगरहता ने पुल होप ने पांचमा भाग प्रमाणे गरिने पाले कांता एनाज उत्मग मागे वाले अयन कालदोष
आही उग मार्ग वाकुल भी द. पण मार के प्रधान एग चरणसित्तरि क्या करणमित्तरिना नाग नेने पंचमा आगने अनुसार ने मृन बाप एगने अपने भाल्यो नगने लन्ग हे वली ए गायनो र्य पंडित लोगाने मृज के बा !! ११ ।।
उत्की तहने थे शिक्षा, उदासीन जे सारे। परुपवचन तहने ते वाले, अंग कहे आत्रा ॥ सा० १५ ॥
अर्थ-नकी उनी के उचराचारित्रिण ाय क्या हानि पखाइ होय मार के इन- होर नेग माधु नो नेत्रान प्रसाद न्वरितादिन उनी निमा गा तेबारे ने पार्श गच्छा निश्त्य डोग दे पाठो शिक्षा पारनार साधुन परतवचन के०