Book Title: Tattvartha Sutra Jainagam Samanvay Author(s): Atmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri Publisher: Lala Shadiram Gokulchand Jouhari View full book textPage 9
________________ आगमों का स्वाध्याय करने वाले तो इस ग्रन्थ को आगमों से संग्रह किया हुआ मानते ही हैं । इसके अतिरिक्त आचार्यवर्य हेमचन्द्ररि ने अपने बनाये हुए 'सिद्धहेमशब्दानुशासन' नाम के व्याकरण में पूज्यपाद उमास्वाति जी महाराज को संग्रह कर्ताओं में उत्कृष्ट संग्रह कर्ता माना है । जैसा कि उन्होंने उक्त ग्रन्थ की स्वोपज्ञवृत्ति में कहा है । . उत्कृष्ट ऽनूपेन २। २। ३६ उस्कृष्टार्थादनूपाभ्यां युक्ताद्वितीया स्यात् । अनुसिद्धसेनं कवयः । उपोमास्वाति संग्रहोतारः ॥ ३॥ स्वोपज्ञ वृहद्वृत्ति में भी उक्त आचार्यवर्य ने उक्त सूत्र की व्याख्या में "उत्कृष्ट ऽथें वर्तमानात् अनूपाभ्यां युक्ताद् गौणानाम्नो द्वितीया भवति । अनुसिद्धसेनं कवयः । अनुमल्लवादिनं तार्किकाः । उपोमास्वाति संगृहीतारः । उपजिनभद्रक्षमाश्रमण व्याख्यातारः । तस्मादन्ये हीना इत्यर्थः ॥ ३५॥" ____आचार्य हेमचन्द्र का समय विकम को १२ वीं शताब्दी सभी विद्वानों को मान्य है। आपके कथन से यह भलीप्रकार सिद्ध हो जाता है कि पूज्य पाद उमास्वाति संग्रह करने वालों में सबसे बढ़कर संग्रह करने वाले माने गये हैं। आगमों से संग्रह किया जाने से यह ग्रन्थ भी संग्रह ग्रंथ माना गया है। अब प्रश्न यह उपस्थित होता है कि भगवान् उमास्वाति ने संग्रह किस रूप में किया है । सो इसका उत्तर यह है कि इस ग्रन्थ में दो प्रकार से संग्रह किया गया है। कहीं पर तो शब्दशः संग्रह है, अर्थात् आगम के शब्दों को संस्कृत रूप दे दिया गया है और कहीं पर अर्थसंग्रह है, अर्थात् आगम के अर्थ को लक्ष्य में रखकर सूत्र की रचना की गई है। कहीं २ पर आगम में आये हुए विस्तृत विषयों को संक्षेप रूप से वर्णन किया गया है। 'आगमों से किस प्रकार इस शास्त्र का उद्धार किया गया है ?' इस विषय को स्पष्ट करने के लिये ही वर्तमान ग्रन्थ विद्वत्समाज के सन्मुख रखा ना रहा है । इस का यह भी उद्देश्य है कि विद्वान् लोग आगमों के स्वाध्याय का लाभ उठा सकें।Page Navigation
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