Book Title: Tattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Author(s): Atmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
Publisher: Lala Shadiram Gokulchand Jouhari

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Page 8
________________ [च] किया जा रहा है। इन लेखकों में से भी जिन महानुभावों ने श्रागमों में से श्रावश्यक विषयों का संग्रह कर जनता का परमोपकार किया है उनको अत्यन्त पूज्य दृष्ट से देखा जाता है और उनके ग्रंथ जैन समाज में अत्यन्त आदरणीय सम जाते हैं। वर्तमान ग्रंथ तत्त्वार्थसूत्र ( मोक्ष शास्त्र ) की गणना उन्हीं आदरणीय ग्रंथों में है । इस ग्रंथ में इसके रचयिता ने आगमों में से आवश्यक विषयों का संग्रह कर जनता का परमोपकार किया है । इसमें तत्त्वों का संग्रह समयोपयोगी तथा सूक्ष्म दृष्टि से किया गया है । इसके कर्ता ने आगमों की मूल भाषा अर्द्ध मागधी से विषयों का संग्रह कर उनको संस्कृत भाषा के सूत्रों में प्रगट किया है । इससे जान पड़ता है कि उस समय संस्कृत भाषा में सूत्र रूप में लिखने की प्रथा विद्वानों में आदर पाने लगी थी । सूत्रकार ने अपने ग्रंथ में जैन तत्त्वों का दिग्दर्शन विद्वानों के भावानुसार संस्कृत भाषा में किया । प्रायः विद्वानों का मत है कि तत्त्वार्थसूत्र के रचयिता का समय विक्रम की प्रथम शताब्दी है । संस्कृत भाषा उस समय विकसित हो रहो थी । जिस प्रकार इस ग्रंथ के कर्ता ने इस संग्रह में अपनी अनुपम प्रतिभा का परिचय दिया है, उसी प्रकार अनेक विद्वानों ने इसके ऊपर भिन्न २ टीकाओं की रचना करके जैन तत्त्वों का महत्व प्रगट किया है । और इस ग्रंथ को आगम के समान ही प्रमाण कोटि में स्थान देकर इसके महत्व को बहुत अधिक बढ़ा दिया है । पूज्यपाद उमास्वाति जी महाराज ने जैन तत्त्वों को आगमों से संग्रह कर जैन और जैनेतर जनता का बड़ा भारी उपकार किया है । यद्यपि इस सूत्र को संग्रह ही माना गया है, किन्तु यह ग्रन्थ सूत्रकार की काल्पनिक रचना नहीं है । कारण कि इस ग्रन्थ में जिन २ विषयों का संग्रह किया गया है उन सब का आगमों में स्पष्ट रूप से वर्णन है । अतः स्वाध्याय प्रेमियों को योग्य है कि वह भक्ति और श्रद्धा पूर्वक आगम तथा सूत्र दोनों का ही स्वाध्याय करें । जिससे भेद भाव मिटकर जैन समाज उन्नति के शिखर पर पहुँच जावे । अब रहा यह प्रश्न कि क्या यह ग्रन्थ वास्तव में संग्रह ग्रंथ है ? सो

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