Book Title: Tattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Author(s): Atmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
Publisher: Lala Shadiram Gokulchand Jouhari

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Page 7
________________ प्रस्तावना प्रिय सुन पुरुषों ! इस अनादि संसार चक्र में परिभ्रमण करते हुए मात्मा को मनुष्य जन्म और आर्यत्व भाव की प्राप्ति हो जाने पर भी श्रुतिधर्म की माप्ति दुर्लभ ही है । इसके अतिरिक्त सम्यग्दर्शन की निर्भरता भी सम्यक श्रुत पर ही है । अतएव उक्त सर्व साधन मिल जाने पर भी सम्यग्दर्शन की प्राप्ति के लिये सम्यक श्रुत का अध्ययन अवश्य करना चाहिये । अब यह प्रश्न उपस्थित होता है कि उक्त प्राप्ति के लिये अध्ययन करने योग्य कौन २ ग्रन्थ ऐसे हैं जिनको सम्यकश्रुत का प्रतिपादक कहा जाना चाहिये । इसके लिये यह उत्तर अत्यन्त युक्ति पूर्ण है कि जिन ग्रंथों के प्रणेता सर्वज्ञ अथवा सर्वज्ञ सदृश महानुभाव हैं वह भागम ही अध्ययन करने योग्य हैं । क्योंकि जिसका वक्ता प्राप्त (सर्वज्ञ) होता है वही भागम सम्यग्दर्शन की प्राप्ति में कारण होता है। यद्यपि सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति क्षायिक, तायोपशमिक अथवा औपत्रमिक भाव पर निर्भर है तथापि सम्यक श्रुत को उसकी उत्पत्ति में कारण माना गया है। अतएव सिद्ध हुमा कि सम्यक् श्रुत का अध्ययन अवश्य करना चाहिये । __ श्वेताम्बर-स्थानकवासी सम्पदाय के अनुसार सम्यक श्रुत का प्रतिपादन करने वाले ३२ श्रागम ही प्रमाणकोटि में माने जाते हैं, जो निम्न प्रकार हैं: ११ अङ्ग, १२ उपाङ्ग, ४ मूल, ४ छेद और ३२ वां आवश्यक सूत्र । ___ इनके अतिरिक्त इन आगमों के आधार से एवं इनके अविरुद्ध बने हुए ग्रंथों को न मानने में भी उक्त सम्प्रदाय आग्रहशील नहीं है। उक्त शास्त्रों के विषय में विशेष परिचय प्राप्त करने के लिये इस विषय के जैन ऐतिहासिक ग्रंथ देखने चाहियें। .. - अनेक महानुभावों ने उक्त आगमों के आधार पर अनेक प्रकार के ग्रन्थों की रचना की है। जिनका अध्ययन जैन समाज में अत्यन्त आदर और पूज्य भाव से

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