Book Title: Siddha Prabhrut Ane Siddha Panchashika
Author(s): Hemchandrasuri
Publisher: Sanghavi Ambalal Ratanchand Jain Dharmik Trust

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Page 161
________________ श्रीसिद्धप्राभृतं सटीकम् १३९ ऊणगसत्तरतणिगाए असंखेज्जगुणा २, साइरेगसत्तरयणिगाए संखेज्जगुणा ३ | एगओ पुण सत्तरतणियाए ओगाहणाए सिद्धा सव्वत्थोवा १, पंचधणुसतिगाए असंखेज्जगुणा २, तओ ऊणगसत्तरतणियाए असंखेज्जगुणा ३ । कहमेयं लब्भइ ? जओ महाविदेहगदा तित्थगरा पंचधणुसयावगाहणगा सिज्झंति सव्वकालं, भण्णइ - पंचधणुसइगं एगं चेव ओगाहणाठाणं, ऊणसत्तरतणिगाणि पुण सत्तरतणिहितो आढत्ताणि पएसहाणीए जाव दुहत्थसिद्धा ताव एत्यंतरे असंखेज्जाणि ओगाहणद्वाणंतराणि लब्धंति, तेसु य सव्वेसु दुहत्थेर्हितो आरब्भ परसुत्तराइएस विसेसाहिया सिद्धा लब्धंति, तेणं एगट्टाणसिद्धेहिंतो असंखिज्जट्ठाणसिद्धा असंखिज्जगुणा चेव हवंति । अह मण्णसि वद्धमाणतित्थे चेव संखेज्जकालवत्तिणो ऊणसत्तरतणिगा तर्हि पंचधणुसइएहिंतो विवरीयसंखगुणा ण होंति त्ति, भण्ण, पंचधणुसइगाणं पविरलभावत्तणओ जइ एगेणावि पएसेण ऊणाहिया तित्थगरादी लब्भंति तहा वि अहिकदत्थो लब्भइ, अणंतरवयणण्णहाणुववत्तितो मन्तव्यमित्यलमतिप्रसङ्गेन । अनया दिशा शेषमपि भावितव्यम् । तओ ऊणसत्तरतणिसिद्धेहिंतो अइरेगपंचधणुसइगाए असंखेज्जगुणा ४, ऊणपंचधणुसइगाए संखेज्जगुणा ५, अइरेगसत्तरतणिगाए विसेसाहिया ६ । गोउस्सप्पिणी अणुभावाणुवत्तिउसभाजियतित्थसिद्धेर्हितो आरओ एए इह पक्कमे घेप्पंति ॥ १०५ ॥ ओगाहणे त्ति सम्मत्तं ॥ उक्कस्से त्ति दारमाह अप्पडिवइया सिद्धा, संखासंखा अणंतकाला य । थोव असंखेज्जगुणा, संखेज्जगुणा असंखगुणा ॥१०६॥ ॥ दारं ॥ "अप्प" गाहा || अप्परिवडिया थोवा १, संखेज्जकालपरिवडियसिद्धा असंखेज्जगुणा २, असंखेज्जकालपरिवडियसिद्धा संखेज्जगुणा ३, अनंतकालपरिवडियसिद्धा असंखेज्जगुणा ४ ॥ १०६ ॥ उक्कस्से त्ति सम्मत्तं ॥ अंतरद्वारमाह छम्मासियम्म थोवा, समए एक्कम्मि होंति संखेज्जा । एवं अंतरसिद्धा, णिरंतराणं कमो इणमो ॥१०७॥

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