________________ ( 20 ) जन्मान्तर का स्मरण हो पाया और साथ ही हंसी आ गई। इस अकाल हास्य से क्रुद्ध हो माता ने हंसी का कारण पूछा / बालक ने कहा कि एक ओर मार्जारी मुझे खाने को बैठी है, दूसरी ओर जातहारिणी मेरा हरण करने के विचार से मेरी ओर टकटकी लगाये है और तुम स्नेह से पुलकित हो अतृप्त नेत्रों से मुझे देख रही हो तथा बड़े चाव से चमचाट रही हो। पर मैं सोचता हूँ कि जिस प्रकार मार्जारी और जातहारिणी स्वार्थवश मुझे देख रही हैं उसी प्रकार तुम भी स्वार्थवश ही यह सब प्यार दुलार कर रही हो / अन्तर केवल इतना ही है कि ये दोनों मुझे खा कर सद्यः अपना स्वार्थसाधन करना चाहती हैं और तुम धीरे-धीरे मुझसे अपने स्वार्थ का साधन करना चाहती हो / बस, इसी विचार से मुझे हंसी आ गई है। यह सुन माता ने कहा कि यदि तुम मेरे स्नेह को स्वार्थमूलक समझते हो तो मैं तुम्हें अभी छोड़े देती हूँ। इतना कह बालक को त्याग कर माता सूतिकागृह से बाहर चली गई। उसी समय जातहारिणी ने उसे उठा लिया और ले जाकर राजा निष्क्रान्त की नवप्रसूता पत्नी हैमिनी की शय्या पर सुला दिया और वहाँ के बच्चे को ले जाकर विशाल ग्राम के बोध नामक ब्राह्मण की नवप्रस्ता पत्नी के बिछौने पर रख उसके नव जात बालक को खा डाला / राजा ने उस बालक का नाम अानन्द रखा बड़ा होने पर उपनयन संस्कार के समय जब गुरु ने जननी को प्रणाम करने के लिये कहा तब अानन्द ने बताया कि मेरी जननी यहां नहीं है / मैं तो दूसरी। माता के उदर से पैदा हुआ हूँ। जातहारिणी मुझे यहाँ ले आई है और यहाँ के पुत्र को उसी ने विशाल ग्राम में बोध नामक ब्राह्मण के घर कर दिया है / वह चैत्र नाम से वहाँ स्थित है। यह कह आनन्द ने तपस्या करने के हेतु वन जाने की अनुमति मांगी। राजा निष्क्रान्त ने वस्तुस्थिति जानकर उससे अपनी ममता तोड़ वन जाने की अनुमति दे दी। वह वन में जा कर कठोर तप करने लगा। उसकी गम्भीर तपोनिष्ठा को देख प्रजापति ने उससे कहा कि इस तपस्या से तुम मुक्ति न प्राप्त कर सकोगे क्यों कि तुम्हारे कर्म अभी बहुत अधिक शेष हैं / तुम्हें मनु का पद प्राप्त कर पृथ्वी के शासन की व्यवस्था करनी है / तप छोड़ तुम उस कार्य का साधन करो / उक्त बात कहते समय प्रजापति ने उसे चाक्षुष नाम से संबोधित किया था अतः उसने अपने को चाक्षष नाम से प्रसिद्ध किया और प्रजापति के कथनानुसार तप से विरत हो समस्त पृथ्वी को अपने अधीन कर मनु का पद प्राप्त किया / तदनन्तर राजा उग्र की कन्या विदर्भा से विवाह किया जिससे पराक्रमशाली अनेक पुत्रों का जन्म हुआ / इस मन्वन्तर में आर्य, प्रसूत, भव्य, यथग और लेख नाम के पांच देवगण हुये / मनोजव राजा ने इन्द्र का पद प्राप्त किया। सुमेधा, विरजा, हविष्मान् ,