Book Title: Markandeya Puran Ek Adhyayan
Author(s): Badrinath Shukla
Publisher: Chaukhambha Vidyabhavan

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Page 45
________________ ( 24 ) पृथ्वी पर भ्रमण करता था / उसका यह ढंग देख उसके पितरों ने समझाया कि जो मनुष्य विवाह नहीं करता उसके देवऋण, पितृऋण, ऋषिऋण तथा लोकऋण के बन्धन नहीं टूटते, प्रत्युत वे अधिकाधिक दृढ़ होते रहते हैं / कर्मविमुख मनुष्य को अधोगति होती है। विहित कर्मों के परित्याग से पापों का संग्रह होता है। निष्काम कर्म के विना चित्तशुद्धि, विद्याप्राप्ति तथा संयमसिद्धि जो मोक्ष के लिये नितान्त अपेक्षित है, नहीं होती। यह निश्चय समझो कि कर्मत्याग मोक्ष का मार्ग नहीं अपितु निष्काम कर्म मोक्ष का मार्ग है। अतः तुम विवाह कर गृहस्थाश्रम में प्रवेश करो। यदि ऐसा न करोगे तो तुम्हारा सारा मोक्ष-प्रयास व्यर्थ होगा / इस तथ्य के अवगत होने पर रुचि को पत्नी प्राप्त करने की कामना हुई / निर्धनता तथा वय की अधिकता के कारण पत्नी की प्राप्ति अत्यन्त कठिन थी / अतः उस कामना की पूर्ति के लिये नियमपूर्वक सौं वर्ष तक उसने ब्रह्मा की अाराधना की / ब्रह्मा ने प्रसन्न हो कर दिया कि तुम प्रजापति होकर प्रजा की सृष्टि कसेगे तथा आवश्यक क्रियाओं का अनुष्ठान कर अन्त में मुक्ति प्राप्त करोगे / वरदान के साथ ही उन्होंने यह भी निर्देश किया कि अब तुम अपने मनोरथ की सिद्धि के लिये अपने पितरों का तर्पण करो / तृप्त पितरों की कृपा से ही तुम्हारी कामना पूर्ण होगी अन्यथा नहीं। ब्रह्मा जी की आज्ञा से नदी के निर्जन पुलिन में भक्तिभाव से उसने पितरों का तर्पण और स्तवन किया। पितृगण प्रसन्न हो गये। उनके आशीर्वाद से नदी के निर्मल नीर से निकल प्रम्लोचा नाम की अप्सरा ने अपनी परम सुन्दरी नवयौवना कन्या मालिनी का उसके साथ विवाह कर दिया / उस स्त्री से एक महामेधावी, महाबलशाली पुत्र पैदा हुअा, जिसका नाम रोच्य रखा गया। यही तेरहवें मनु हैं / इस मन्वन्तर में सुधर्मा, सुकर्मा और और सुशर्मा ये तीन प्रकार के देवता होंगे। दिवस्पति इन्द्र होंगे। धृतिमान् , अव्यय, तत्त्वदर्शी, निरुत्सुक, निर्मोह, सुतपा और निष्प्रकम्प सप्तर्षि होंगे। चित्रसेन, विचित्र, नयति, निर्भय, दृढ, सुनेत्र, क्षत्रबुद्धि और सुव्रत मनु के इन पुत्रों के वंश इस मन्वन्तर के राजवंश होंगे। 14. भौत्य अङ्गिरा के शिष्य भति बड़े क्रोधी तथा बड़े प्रभावशाली मुनि थे / सारी प्रकृति उनके तेज से प्रभावित थी। जड़, चेतन सभी उनका अनुवर्तन करते थे। उनके कोई पुत्र न था / पुत्र के लिये उन्होंने तपस्या भी की, पर पुत्र-प्राप्ति न हुई / एक बार उनके भाई सुवर्चा ने एक महान् यज्ञ ठाना और उसमें उन्हें आमन्त्रित किया / वे अपने शिष्य शान्ति को अाश्रम में अग्नि को जागृत रखने के लिये सचेत कर यज्ञ में सम्मिलित होने चले गये। इधर एक दिन शान्ति को समिध श्रादि लाने में कुछ देर हो जाने से श्राश्रम की अग्नि बुझ गई /

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