Book Title: Markandeya Puran Ek Adhyayan
Author(s): Badrinath Shukla
Publisher: Chaukhambha Vidyabhavan

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Page 52
________________ शुम्भ-निशुम्भवधसप्तशती के पाँचवें अध्याय से दशवें अध्याय तक देवी द्वारा शुम्भ तथा निशुम्भ एवं उनकी सेना के संहार का वर्णन है / इस वर्णन का आध्यात्मिक दृष्टिकोण इस प्रकार है। शुम्भ का अर्थ है अहंकार और अहंकार का अर्थ है शरीर आदि अनात्म वस्तुवों में श्रात्मरूपता का भ्रम / इस अहंकार के अनन्तर ममकार अर्थात ममत्वाभिमान का जन्म होता है / यह ममकार ही निशुम्भ है / अहंकार-रूप शुम्भ का अनुजन्मा होने के कारण इसे शुम्भ का अनुज कहा गया हैं। ___ इस शुम्भ और निशुम्भ के भृत्य हैं चण्ड और मुण्ड अर्थात काम तथा क्रोध / ये तुहिनाचल पर संस्थित देवी को अर्थात नित्य निर्मल आत्म तत्त्व को विषय-विधया पाश्रय बनाने वाली वृद्धि को शुम्भ-निशुम्भ अर्थात अहंकार एवं ममकार की अनुगामिनी बनाना चाहते हैं / उसे अात्मसात करने के लिये ये शुम्भ-निशुम्भ को उसकाते हैं / इनका अभिप्राय यह है कि बुद्धि यदि अहंकार और ममकार का साथ दे दे, उनका अनुवर्तन करने लगे तो फिर आसुरी सेना अजेय हो जाय / देवगण कदापि शिर न उठा सके और स्वर्ग अर्थात सत्त्वअन्तःकरण पर सदा के लिये असुर-राज्य प्रतिष्ठित हो जाय। चण्ड, मुण्ड की प्रेरणा से प्रभावित हो शुम्भ एक दूतद्वारा देवी के पास प्रणय सन्देश भेजता है / इस दूत का नाम सुग्रीव है। यह सुग्रीव कौन है ? यह है दम्भ / इसका स्वभाव है कपटमय कृत्रिम वर्णनों द्वारा मिथ्या उत्कर्ष का विज्ञापन। अपने इस स्वभाव के अनुसार यह दूत शुम्भ, निशुम्भ की विविध महिमा का गान कर देवी को उनकी ओर आकृष्ट करने का प्रयास करता है किन्तु उनके समक्ष उसकी कुछ नहीं चलती। वह स्पष्ट कह देती हैं / यो मां जयति संप्रामे यो मे दर्प व्यपोहति / यो मे प्रतिबलो लोके स मे भत्तो भविष्यति / जो व्यक्ति युद्ध में मुझे जीत लेगा, मेरे दर्प को दूर करेगा, जो संसार में मुझ से बलवान् होगा, वही मेरा भर्ता हो सकेगा / दूत असफल हो शुम्भ-निशुम्भ के पास लौट जाता है और उन से देवी के दृढ दर्प का वर्णन करता है / : अपने सन्देश की उपेक्षा और देवी की अभिमान भरी बात से शुम्भ रुष्ट हो जाता है और उन्हें बलपूर्वक पकड़ लाने के लिये दैत्यों के अधिप धूम्रलोचन को श्रादेश देता है / यह धूम्रलोचन कौन है ? यह है लोभ / विवेक-रूपलोचन के लिये धुवाँ के समान होने के कारण इसे धूम्रलोचन कहा गया है। इसका स्वभाव

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